Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१६०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २१४. एगपक्खेवो आगच्छादि । इमं पुध हविय पुणो तेणेव सव्वजीवरासिणा दोपक्खेवेसु भागे हिदेसु दोपिसुलाणि आगच्छंति । पुणो एदाणि दो वि पिसुलाणि पुग्विल्लपक्खेवपस्से ठविय पुणो तेणेव भागहारेण एगपिसुले भागे हिदे एगं पिसुलापिसुलमागच्छदि । पुणो एगपक्खवं दोपिसुलाणि एगं पिसुलापिसुलं च घेत्तण विदियवडिहाणं पडिरासिय पक्खित्ते तदियं वड्डिाणं होदि । एदं तदियवड्डिाणं जहण्णहाणं पेक्खिदूण तीहि पक्खेवेहि तीहि पिसुलेहि एगेण पिसुलापिसुलेण च अहियं होदि । ... पुणो एदेसिं जहण्णट्ठाणादो आणयणविधि भणिस्सामो। तं जहा-सव्वजीवरासितिभागं विरलिय जहण्णहाणं समखण्डं करिय दिण्णे विरलिदरूवं पडि तिपिणतिण्णिपक्खेवपमाणं पावदि । पुणो एदिस्से' विरलणाए हेहा सव्वजीवरासिं विरलेदण उवरिमविरलणाए एगरूवधरिदं समखण्डं कादृण दिण्णे एककस्स रूवस्स तिण्णि-तिण्णिपिसुलपमाणं पावदि । पुणो एदिस्से विरलणाए हेडा तिगुणं सव्वजीवरासिं विरलेदृण मज्झिमविरलणाए एगरूवधरिदं घेत्तूण समखण्डं कादूण दिण्णे एकेकस्स रूवस्स एगेगपिसुलापिसुलपमाणं पावदि । पुणो तिगुणं सत्रजीवरासिं रूवाहियं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो सव्वरासिमेत्तमज्झिमविरलणम्हि कि लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एगरूवस्स तिभागो किंचूणो आगच्छदि । पुणो इमं सव्वजी
भाग देनेपर एक प्रक्षेप आता है । इसको पृथक् स्थापित करके उसी सब जीवराशिका दो प्रक्षेपोंमें भाग देनेपर दो पिशुल आते हैं। फिर इन दोनों ही पिशुलोंको पूर्व प्रक्षेपके पासमें स्थापित कर फिर से उसी भागहारका एक पिशुल में भाग देनेपर एक पिशुलापिशुल आता है । पुनः एक प्रक्षेप,
दो पिशुल और एक पिशुलापिशुलको ग्रहण कर द्वितीय वृद्धिस्थानको प्रतिराशि करके मिलानेपर . तृतीय वृद्धिस्थान होता है। यह तृतीय वृद्धिस्थान जघन्य स्थानकी अपेक्षा तीन प्रक्षेपों, तीन पिशुलों और एक पिशुलापिशुलसे अधिक होता है।
अब इनकी जघन्य स्थानसे लानेकी विधि कहते हैं। वह इस प्रकार है-सब जीवराशिके तृतीय भागका विरलन कर जघन्य स्थानको समखण्ड करके देनेपर विरलित अंककेप्रति तीन-तीन प्रक्षेपोंका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर इस विरलनके नीचे सब जीवराशिका विरलनकर उपरिम विरलन राशिके एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यकोसमखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति तीनतीन पिशलोंका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर इस विरलनके नीचे तिगुणी सब जीवराशिका विरलन कर मध्यम विरलनके एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको ग्रहणकर समखड करके देनेपर एक-एक अंकके प्रति एक एक पिशुलापिशुलका प्रमाण प्राप्त होता है । अब एक अधिक तिगुणी सब जीवराशि जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो सब जीवराशि प्रमाण मध्यम विरलनमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर एक अंकका कुछ कम
१ ताप्रतौ ‘एदेसि' इति पाठः ।
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