Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २१४] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया
[१५९ पमाणं पावदि । पुणो एदेसिमुवरि एगपिसुलागमणमिच्छामो त्ति दुगुणसव्वजीवगसिंहेहा विरलेद्ण उवरिम विग्लणाए एगरूवधरिददोपक्खेवे घेत्तूण समखण्डं कादूण दिण्णे विरलिदरूवं पडि एगेगपिसुलपमाणं पावदि । पुणो एत्थ एगेगपिसुलं घेत्तूण उवरिमविरलणाए एगरूवधरिददोपक्खवेसु दिण्णे हेहिमविरलण मेत्तद्धाणं गंतूण एगरूवपरिहाणी दिस्सदि । एदस्स पिसुलस्स दोहि पक्खेवेहि सह आगमणे इच्छिञ्जमाणे दुगुणं रूवाहियं सयजीवरासिं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो सव्वजीवरासिअद्धम्मि किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एगरूवस्स चदुब्भागो किंचूर्ण आगच्छदि । केत्तियो'णूणो ? एगरूवस्स अणंतिमभागेण । संपधि एदम्मि किंचूणेगरूवचदुब्भागे उवरिमविरलणाए सव्यजीवरासिदुभागमेतीए अवणिदे सेसं किंचूर्ण सव्वजोवरासिअद्धं भागहारो होदि । पुणो एदेण जहण्णहाणे भागे हिदे एगपिसुलसहिददोपक्खेवा आगच्छति । एदेसु जहण्णहाणस्सुवरि पक्खित्तेसु विदियमणंतभागवड्डिहाणं होदि ।
संपहि तदियअणंतभागवड्डिहाणं भणिस्सामो । तं जहा-विदियट्ठाणम्मि एगपिसुले दोपक्खेवेसु अवणिदेसु जहण्णहाणं होदि । तम्मि सव्वजीवरासिणा भागे हिदे
प्रक्षेपोंका प्रमाण प्राप्त होता है। अब इनके ऊपर चूंकि एक पिशुलका लाना अभीष्ट है, अतएव दगणी सब जीवराशिका नीचे विरलन कर उपरिम विरलन गशिके एक अंकके प्रति प्राप्त दो प्रक्षेपोंको ग्रहण कर समखण्ड करके देनेपर विरलित अंकके प्रति एक एक पिशुलका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर इनमेंसे एक एक पिशुलको ग्रहण कर उपरिम विग्लनके एक अंकके प्रति दो प्रक्षेपोंमें देनेपर अधस्तन विरलन मात्र अध्वान जाकर एक अंककी हानि देखी जाती है। इस पिशुलके दो प्रक्षेपोंके साथ लानेकी इच्छा करनेपर एक अधिक दुगुणी सब जीवराशि जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जावेगी तो सब जीवराशिके आधेमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाणसे फालगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर एक अंकका कुछ कम चतुर्थ भाग आता है।
शंका-वह कितना कम? समाधान-वह एक अंकके अनन्तवें भागसे कम है।
अब एक अंकके कुछ कम इस चतुर्थ भागको सब जीवराशिके अर्ध भाग प्रमाण उपरिम विरलनमेंसे कम कर देनेपर शेष कुछ कम सब जीवराशिका अर्ध भाग भागहार होता है । इसका जघन्य स्थानमें भाग देनेपर एक पिशुल सहित दो प्रक्षेप आते हैं। इनको जघन्य स्थानके ऊपर मिलानेपर द्वितीय अनन्तभागवृद्धिस्थान होता है।
___ अब तृतीय अनन्तभागवृद्धिस्थानकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-द्वितीय स्थानमें से एक पिशुल और दो प्रक्षेपोंको कम करनेपर जघन्य स्थान होता है। उसमें सब जीवराशिका
१ ताप्रतौ 'केत्तिएणूणो' इति पाठः ।
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