Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २१०.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [१५५ लद्धं तं तम्हि चेव पडिरासिय पक्खित्ते पढमसंखेजभागवड्डिाणमुप्पजदि । एदम्हादो एगाविभागपडिच्छेदे अवणिदे द्वाणंतरं होदि । एदं हेहिमअणंतभागवड्डिहाणंतरेहितो अणंतगुणं । असंखेज भागवड्डिहाणंतरेहितो असंखेजगुणं । उवरिमअगंतगुणवड्डीए हेहिमअणंतभागवड्डिाणंतरेहिंतो अणंतगुणं । असंखेजगुणवड्डीए हेढिमअसंखेजभागवड्डिहाणत. रेहितो असंखेजगुणं । अणंतगुणवड्डीए हेहिमसंखेज भागवड्डिट्ठाणंतरेहिंतो संखेजभागहीणं संखेजगुणहीणं असंखेजगुणहीणं वा । एवं फद्दयंतराणं पि थोवबहुत्तं जाणिय वत्तव्वं । असंखेजलोगमेत्तछहाणभंतरे हिदसंखेजभागवड्डीणमेवं चेव परूवणा कायव्वा ।
संखेनगुणपरिवढी काए परिवड्डीए ? ॥२०६॥ सुगमं ।
जहण्णयस्स असंखेजयस्स रूवूणयस्स संखेजगुणपरिवड्डी, एवदिया परिवडी ॥२१०॥
___ कंदयमेत्तसंखेज्जमागवड्डीयो गंतूण पुणो उवरि संखेज्जभागवड्डिविसयम्मि हिदचरिमअणंतभागवड्डिहाणे उक्कस्ससंखेजेण गुणिदे संखेज्जगुणवड्डी होदि । पुणो हेहिमट्ठाणम्मि पडिरासिदम्मि इमाए वड्डीए पक्वित्ताए पढमं संखेज्जगुणवड्डिहाणं होदि । उकस्ससंखेज्जमेत्तउव्वंकेसु एगाविभागपडिच्छेदे अवणिदे होणंतरं [होदि। एदं ढाणंतरं]हेडिमउव्वंकट्ठाणंअन्तिम अनन्तभागवृद्धिस्थानमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उसे उसमें ही प्रतिराशि करके मिलानेपर संख्यातभागवृद्धिका प्रथम स्थान उत्पन्न होता है। इसमेंसे एक अविभाग तिच्छेदके कम करनेपर स्थानान्तर होता है। यह अधस्तन अनन्तभागवृद्धिस्थानान्तरोंसे अनन्तगुणा है। असंख्यात. भागवृद्धि स्थानान्तरोंसे असंख्यातर णा है। उपरिम अनन्तगुणवृद्धिके अधस्तन अनन्तभागवृद्धिस्थानान्तरोंसे अनन्तगुणा है। असंख्यातगुणवृद्धिके अधस्तन असंख्यातभागवृद्धि स्थानान्तरोंसे असंख्यातगुणा है । अनन्तगुणवृद्धिके अधस्तन संख्यातभागवृद्धिस्थानान्तरोंसे संख्यातवें भागसे हीन, संख्यातगुणाहीन अथवा असंख्यातगुणा हीन है। इस प्रकार स्पद्धकान्तरोंके भी अल्पबहत्वको जानकर कहना चाहिये। असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानोंके भीतर स्थित संख्यातभागवृद्धियोंकी इसी प्रकार ही प्ररूपणा करनी चाहिये।
संख्यातगुणवृद्धि किस वृद्धिसे वृद्धिंगत है ? ॥ २० ॥ यह सूत्र सुगम है।
वह एक कम जघन्य असंख्यातकी वृद्धिसे वृद्धिंगत है। इतनी मात्र वृद्धि होती है॥ २१० ॥
___ काण्डक प्रमाण संख्यातभागवृद्धियाँ जाकर फिर आगे संख्यातभागवृद्धिके विषयमें स्थित अन्तिम अनन्तभागवृद्धिग्थानको उत्कृष्ट संख्यातसे गुणित करनेपर संख्यातगुणवृद्धि होती है । फिर प्रतिगशिभूत अधस्तन स्थानमें इस वृद्धिको मिलानेपर प्रथम संख्यातगुणवृद्धिस्थान होता है। उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण ऊवकोंमेंसे एक अविभागप्रतिच्छेदके कम करनेपर स्थानान्तर होता है। यह
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