Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २०४.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [१३५
छहाणपरूवणदाए अणंतभागपरिवड्डी काए परिवड्डीए [वड्डिदा?] सव्वजीवेहि अणंतभागपरिवड्डी। एवदिया परिवड्डी ॥२०४॥
_ 'अणंतभागपरिवड्डी काए परिवड्डीए वड्डिदा' इत्ति पुच्छिदे अणंतभागपरवड्डी सव्वजीवेहि वडिदा । 'सव्वजीवेहिं' ति उत्ते सव्वजीवाणं गहणं ण होदि, जीवेहितो अणुभागवड्डीए असंभवादो। किं तु सव्वजीवरासिस्स जा संखा सा तदभेदेण 'सव्वजीव' इत्ति घेत्तव्वा । तेहि सव्वजीवेहि भागहारभावेण करणत्तमावण्णेहि पड्डिदा। सबजीवरासिणा जहण्णहाणे भागे हिदे जं लद्धं सा वड्डी, जहण्णहाणे पडिरासिय वड्डिदपक्खेवे पक्खित्ते पढममणंतभागवड्डिहाणं उप्पजदि ति भणिदं होदि । जहण्णहाणे सव्वजीवरासिणा खंडिदे तत्थ एगखंडेणोवट्टिय' पढममणंतभागवड्डिहाणमुप्पजदि जं भणिदं तण्ण घडदे । तं जहा-जहण्णहाणं पण्णारसविहं, परमाणुफद्दयवग्गणाविभागपडिच्छेदेसु एग-दुगा. दिअक्खसंचारवसेण पपणारसविहजहण्णहाणुप्पत्तिदंसणादो। एदेसु पण्णारस विहजहण्णहाणेसु सव्वजीवरासिणा कं ठाणं छिज्जदे ? ण ताव परमाण छिजंति, सव्वजीवेहि अभवसिद्धिएहिंतो अणंतगुणहीणकम्मपोग्गलेसु छिजमाणेसु एगपरमाणुअणंतिमभागस्स उवलंभादो। ण च पक्खेवो एगपरमाणुअणंतिमभागमेत्तो होदि, अणंतेहि परमाणूहि
षट्स्थानप्ररूपणामें अनन्तभागवृद्धि किस वृद्धिके द्वारा वृद्धिंगत हुई है ? अनन्तभागवृद्धि सब जीवोंसे वृद्धिंगत हुई है । इतनी मात्र धृद्धि है ॥ २०४ ॥
'अनन्तभागवृद्धि किस वृद्धि द्वारा वृद्धिंगत हुई है', ऐसा पूछनेपर अनन्तभागवृद्धि सब जीवोंसे वृद्धिंगत हुई है । 'सब जीवोंसे' ऐसा कहनेपर सब जीवोंका ग्रहण नहीं होता है, क्योंकि, जीवोंसे अनुभागवृद्धि सम्भव नहीं है। किन्तु सब जीवराशिकी जो संख्या है वह उक्त जीवोंसे अभिन्न होनेके कारण 'सब जीव' ग्रहण करने योग्य हैं। भागहार स्वरूपसे करणकारक अवस्थाको प्राप्त हए उन सब जीवोंसे वह वृद्धिको प्राप्त हुई है। सब जीवराशिका जघन्य स्थानमें भाग देनेपर जो लब्ध हो वह वृद्धिका प्रमाण है । जघन्य स्थानको प्रतिराशि करके उसमें वृद्धिप्राप्त प्रक्षेपको मिलानेपर प्रथम अनन्तभागवृद्धिका स्थान उत्पन्न होता है, यह उसका अभिप्राय है।
शंका-जघन्य स्थानको सब जीवराशिसे खण्डित करनेपर उसमें से एक खण्डके द्वारा अपवर्तित प्रथम अनन्तभागवृद्धिका स्थान होता है, यह जो कहा गया है वह घटित नहीं होता है। वह इस प्रकारसे-जघन्य स्थान पन्द्रह प्रकारका है, क्योंकि परमाणु, स्पर्द्धक, वर्गणा और अविभागप्रतिच्छेद इनमें एक, दोआदिरूपसे अक्षसंचारके वश पन्द्रह प्रकारके जघन्य स्थानकी उत्पत्ति देखी जाती है। इन पन्द्रह प्रकारके जघन्य स्थानोंमेंसे सब जीवराशिके द्वारा कौनसा स्थान खण्डित किया जाता । है ? उसके द्वारा परमाणु तो खण्डित किये नहीं जा सकते, क्योंकि, अभव्यसिद्धोंकी अपेक्षा अनन्तगुणे हीन कर्मपुद्गलोंको सब जीवों द्वारा खण्डित करनेपर एक परमाणुका अनन्तवां भाग पाया जाता है। परन्तु प्रक्षेप एक परमाणुके अनन्तवें भाग मात्र होता नहीं है, क्योंकि, अभव्यसिद्धोंसे
१ प्रतिषु 'खंडेगोवट्टिय ( या-वडिय )' इति पाठः ।
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