Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २०४.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया
[१३७ तरासिसमुप्पत्तीदो। एदेसिं संजोगजणिदजहण्णट्ठाणेसु वि भवहिरिजमाणेसु एसो चेव दोसो, सिद्धाणमणंतिमभागं पडि विसेसाभावादो। ण जहण्णट्ठाणअविभागपडिच्छेदा वि सव्वजीवरासिणा छिज्जंति, जहण्णहाणचरिमफद्दयअविभागपडिच्छेदाणमणंतिमभागमेत्तअविभागपडिच्छेदेहि' पक्खेवाविभागपडिच्छेदाणमुप्पत्तीए अभावादो। ण च अणंताणं जहण्णट्ठाणचरिमफद्दयाणं अविभागपडिच्छेदेहि उप्पजमाणो पक्खेवो जहण्णट्ठाणचरिमफद्दयअविभागपडिच्छेदाणमणंतिमभागेण उप्पजदि, विरोहादो। ण च पक्खेवफद्दयाणमणंतत्तमसिद्ध पक्खेवाहिच्छावणणिक्खेवफद्दयाणि अणंताणि त्ति पाहुडसुत्तसिद्धत्तादो।
णाविभागपडिच्छेदसंजोगजणिदजहण्णट्ठाणाणि वि छिजंति, पादेक्कभंगदोससिदत्तादो । ण चापुव्वेहि फद्दएहि विणा सव्वजीवरासिणा जहण्णहाणे खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तअविभागपडिच्छेदेसु उक्कडिदेसु विदियहाणमुप्पजदि, उक्कड्डणाए वड्डीए इच्छिञ्जमाणाए सरिसधणियपरमाणुवड्डीए वि अणुभागहाणवड्डिप्पसंगादो। ण च एवं, जोगादो वि अणुभागस्स बुड्ढिप्पसंगादो । ण च एवं, गुणिदकम्मंसियं मोत्तूण अण्णत्थ उक्कस्साणुभागहाणस्स अभावावत्तीदो । ण च एवं, उकस्साणुभागहाणकालस्स जहण्णेण एगसमयावहाणप्पसंगादो। ण च एवं, उकस्साणुभागकालस्स जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहु
उत्पन्न हुए जघन्य स्थानोंको भी अपहृत करनेपर यही दोष है, क्योंकि, सिद्धांके अनन्तवें भागके प्रति कोई भेद नहीं है। जघन्य स्थानके अविभाग प्रतिच्छेद भी सब जीवराशिके द्वारा खण्डित नहीं किये जा सकते, क्योंकि, जघन्य स्थान सम्बन्धी अन्तिम स्पर्द्धकके अविभागप्रतिच्छेदोंके अनन्तवें भाग मात्र अविभागप्रतिच्छेदोंसे प्रक्षेप सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेदोंकी उत्पत्ति सम्भव नहीं है। जघन्य स्थान सम्बन्धी अनन्त अन्तिम स्पर्द्धकोंके अविभागप्रतिच्छेदोंसे उत्पन्न होनेवाला प्रक्षेप जघन्य स्थान सम्बन्धी अन्तिम स्पर्द्धकके अविभागप्रतिच्छेदोंके अनन्तवें भागसे नहीं उत्पन्न हो सकता, क्योंकि, उसमें विरोध है । और प्रक्षेपस्पद्धकोंकी अनन्तता असिद्ध नहीं है, क्योंकि प्रक्षेप, अतिस्थापना और निक्षेप स्पर्द्धक अनन्त हैं; यह प्राभृतसूत्रसे सिद्ध है।
अविभागप्रतिच्छेदोंके संयोगसे उत्पन्न जघन्य स्थान भी उक्त सब जीवराशि द्वारा खण्डित नहीं किये जा सकते हैं, क्योंकि, जो दोष प्रत्येक भंगमें सम्भव हैं वे ही दोष यहां भी सम्भव हैं । दूसरे, अपूर्व स्पर्द्धकोंके विना सब जीवराशि द्वारा जघन्य स्थानको खण्डित करनेपर उसमें से एक खण्ड मात्र अविभागप्रतिच्छेदोंके उत्कर्षणको प्राप्त होनेपर द्वितीय स्थान उत्पन्न भी नहीं हो सकता है, क्योंकि, उत्कर्षण द्वारा वृद्धिको स्वीकार करनेपर समान धनवाले परमाणुओंकी वृद्धिसे भी अनुभागस्थानकी वृद्धिका प्रसंग आता है। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, योगके द्वारा भी अनुभाग वृद्धिका प्रसंग आता है। परन्तु ऐसा है नहीं; क्योंकि, गुणितकर्माशिकको छोड़कर अन्यत्र उत्कृष्ट अनुभागस्थानके अभावकी आपत्ति आती है। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, इस प्रकारसे उत्कृष्ट अनुभागस्थानके कालके जघन्य स्वरूपसे एक समय अवस्थानका प्रसंग आता है। परन्तु
___ १ अ-आप्रत्योः '-पडिच्छेदंहिं' इति पाठः। २ अापतौ '-भागेण उप्पजदि ति विरोहादो' ताप्रतौ -भागेणे तिण उप्पजदि त्ति विरोहादो' इति पाठः। ..
छ. १२-१८.
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