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१४२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २,७,२०४. त्ति बोत्तण जुत्तं, पंचमीए 'एगवयणते गहिदे वि सव्वजीवरासिस्सेव भागहारत्तवलंभादो। तं पि कुदो णव्वदे ? सर्वजीवादन्यस्य राशेरनिष्टत्वात्, ततः कविवक्षायामनन्तभागवृद्धिः सर्वजीवैर्वर्द्धिता, हेतुविवक्षायां सर्वजीवाद् वृद्धिः इति सिद्धम् । ण च सुत्तविरुद्धं बक्खाणं होदि, तस्स वक्खाणाभासत्तप्पसंगादो। किं च, एसो भागहारो अणुभागट्टाणबुड्डीए अण्णस्स, अण्णहा अणंतभागवड्डी सव्वजीवेहि वड्डिदा ति सुत्तेण सह विरोहादो। सावि अणुभागहाणवुड्डी ण सरिसधणपरमाणुउड्डीए होदि, जोगवड्डीदो वि अणुभागवुढिप्पसंगादो। ण च एवं; वेदणीयस्स उक्कस्सखेत्ते जादे तस्सेव भावो णियमा उक्कस्सो त्ति सुत्तवयणादो। उक्कड्डणाए अणुभागवुड्डिप्पसंगादो श्रोकड्डणाए अणुभागहाणिप्पसंगादो च ण सरिसधणियपरमाणुवुड्डीए अणुभागहाणवड्डी । जोगहाणम्मि सरिसधणियजीवपदेसाणमविभागपडिच्छेद उड्डीए जहा जोगहाणबुड्ढी गहिदा तहा एत्थ किण्ण घेप्पदे १ ण, णाणापोग्गलदव्वविदसत्तीणं एगजीवदयहिदसत्तीणं च एगत्तविरोहादो । ण च भिण्णदव्वहिदसत्तीणं तव्वड्डीणं वा एगत्तमस्थि, अइप्पसंगादो ।
एक वचनान्त ग्रहण करनेपर सूत्रके साथ विरोध नहीं होता है, सो ऐसा कहना भी योग्य नहीं है; क्योंकि, पंचमीका एकवचनान्त ग्रहण करनेपर भी सब जीवराशिके ही भागहारपना पाया जाता है। वह भी किस प्रमाणसे जाना जाता है? कारण कि सब जीवराशिसे भिन्न अन्य भागहार अनिष्ट है। इसलिये कर्तृत्व विवक्षामें अनन्तभागवृद्धि सब जीवों द्वारा वृद्धिको प्राप्त होती है और हेतु विवक्षामें सब जीवराशिके निमित्तसे वृद्धि होती है, यह सिद्ध है। दूसरे, सूत्रसे विरुद्ध व्याख्यान होता नहीं है, क्योंकि, इस प्रकारसे उसके व्याख्यानाभास होनेका प्रसंग आता है । और भी-यह भागहार अनुभागस्थानवृद्धिसे अन्यका है, क्योंकि, अन्यथा “अनन्तभागवृद्धि सब जीवोंसे वृद्धिको प्राप्त होती है। इस सूत्रके साथ विरोध होता है। वह भी अनुभागस्थानवृद्धि समान धनवाले परमाणुओंकी वृद्धिसे नहीं होती है, क्योंकि, वैसा होनेपर योगवृद्धिसे भी अनुभागवृद्धिके होनेका प्रसंग आता है। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि "वेदनीय कर्मका उत्कृष्ट क्षेत्र हो जानेपर उसीका भाव नियमसे उत्कृष्ट होता है" ऐसा सूत्र वचन है। उत्कर्षणसे अनुभागकी वृद्धिका प्रसंग होनेसे तथा अपकर्षणसे अनुभागकी हानिका प्रसंग होनेसे भी समान धनवाले परमाणुओंकी वृद्धिसे अनुभागस्थानकी वृद्धि नहीं होती है।
शंका-योगस्थानमें समान धनवाले जीवप्रदेशोंके अविभागप्रतिच्छेदोंकी वृद्धिसे जैसे योगस्थामकी वृद्धि ग्रहण की गई है वैसे यहां वह क्यों नहीं ग्रहण की जाती है ? ___ समाधान नहीं, क्योंकि, नाना पुद्गल द्रव्यों में स्थित शक्तियों और एक जीव द्रव्यमें स्थित शक्तियोंके एक होनेका विरोध है। परन्तु भिन्न द्रव्योंमें स्थित शक्तियां अथवा उनकी वृद्धियां एक नहीं हो सकतीं, क्योंकि, बैसा होनेपर अतिप्रसंग दोष आता है।
१ ताप्रतौ जुत्तं पि (त्ति), पंचमीए'। २ अप्रतौ 'रनिष्टत्वात्तद्राशीतः', श्राप्रती 'रनिष्टत्त्वात्तीतः' इति पाठः। ३ अाप्रत्योः 'सो' इति पाठः। ४ अ आप्रत्योः 'उकस्सा' इति पाठः।।
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