Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[ ४, २, ७, २०३.
संखेज भागवड्डिस लागाओ असंखेज गुणाओ । को गुणगारो ? रूवाहियकंदयं । ( असंखेजभागवड्डिसलागाओ असंखेजगुणाओ । को गुणगारो ? रूवाहियकंदयं । अनंतभागवड्डिसलागाओ असंखेज्जगुणाओ । को गुणगारो ? रूवाहियकंदयं । एत्थ कारणं जाणिदूण वत्तव्वं । एवमप्पा बहुगं समत्तं । कंदयपरूवणा गदा । ओजजुम्मपरूवणदाए अविभागपडिच्छेदाणि अविभागपडिच्छेदाणि द्वाणाणि कदजुम्माणि, कंदयाणि कदजुम्माणि ॥ २०३ ॥
कदजुम्माणि,
अविभागपडिच्छेद णं सरूवपरूवणं पुव्वं वित्थारेण कदमिदि ोह कीरदे । सव्वाभागांणाणं अविभागपडिच्छेदाणि कदजुम्माणि, चदुहि अवहिरिजमाणे णिरंसदो | सव्वेसिंहाणाणं चरिमवग्गणाए एगेगपरमाणुम्हि हिदअविभागपरिच्छेदा कदजुम्मा, तत्थ दिअणुभागस्सेव ट्ठाणववएसादो । दुवरिमादिवग्गणाणमविभागपडिच्छेदा पुण कदम्मा चैव इत्ति णत्थि नियमो, तत्थ कद- बादरजुम्म- कलि-तेजोजाणं पि उवलंभादो | 'ठाणाणि कदजुम्माणि त्ति उत्ते सगसंखाए फद्दयसलागाहि एगफद्दयवग्गणस लागाहि एगेगपक्खेवफद्दयसलागाहि य द्वाणाणि कदजुम्माणि त्ति उत्तं होदि । 'कंदयाणि कदजुम्माणि' त्ति भणिदे एगकंदयप्रमाणेण छष्णं वड्डीणं पुध बुध कंदयसलागाहिय कंदयाणि कदजुम्माणि । एवमोज - जुम्मपरूवणा समत्ता |
है ? गुणकार एक अधिक काण्डक है । उनसे संख्यातभागवृद्धि काण्डक शलाकायें असंख्यातगुणी हैं। गुणकार क्या है ? गुणकार एक अधिक काण्डक है। उनसे असंख्यात भागवृद्धि काण्डक शलाकायें असंख्यातगुणी हैं। गुणकार क्या है । गुणकार एक अधिक काण्डक है । उनसे अनन्तभागवृद्धि काण्डक शलाकायें असंख्यातगुणी हैं । 'गुणकार क्या है । गुणकार एक अधिक काण्डक है । यहां कारणको जानकर कहना चाहिये । इस प्रकार अल्पबहुस्व समाप्त हुआ । काण्डकप्ररूपणा समाप्त हुई।
श्रयुग्मप्ररूपणा में अविभागप्रतिच्छेद कृतयुग्म हैं, स्थान कुतयुग्म हैं, और काण्ड कृतयुग्म हैं ॥ २०३ ॥
अविभागप्रतिच्छेदों के स्वरूपकी प्ररूपणा पहिले विस्तार से की जा चुकी है, अतएव अब यहां उनकी प्ररूपणा नहीं की जाती है । समस्त अनुभागस्थानोंके अविभागप्रतिच्छेद कृतयुग्म हैं, क्योंकि उन्हें चारसे अपहृत करनेपर कुछ शेष नहीं रहता । सब स्थानोंकी अन्तिम वर्गणा एक एक परमाणुमें स्थित अविभागप्रतिच्छेद कृतयुग्म हैं, क्योंकि, उसमें स्थित अनुभागका नाम ही स्थान है । परन्तु द्विचरमादिक वर्गणाओंके अविभागप्रतिच्छेद कृतयुग्म ही हों, ऐसा नियम नहीं है; क्योंकि, उनमें कृतयुग्म, बादरयुग्म, कलिओज और तेजोज संख्यायें भी पायी जाती हैं । 'स्थान कृतयुग्म हैं' ऐसा कहनेपर स्थान अपनी संख्यासे, स्पर्द्धकशलाकाओंसे, एक स्पर्द्धककी वर्गणाशलाकार्योंसे तथा एक प्रक्षेपस्पर्द्धककी शलाकाओं से कृतयुग्म हैं, ऐसा अभिभ्राय ग्रहण करना चाहिये । 'काण्डक कृतयुग्म हैं' ऐसा कहनेपर एक काण्डक के प्रमाणसे तथा छह वृद्धियों की पृथक् पृथकू काण्डकशलाकाओंसे काण्डक कृतयुग्म हैं, ऐसा समझना चाहिये । इस प्रकार ओज-युग्म प्ररूपणा समाप्त हुई ।
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