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छ खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, २०२
१३२ ] सगफद्दयसलागाहि ओवट्टिदासु फद्दयं होदि । रूवूणे कदे फद्दयंतरं । उव्वंकफद्दयंतरादो अट्ठकफद्दयंत रमणंतगुणं । को गुणगारो ? ठाणंतरगुणगारस्स अनंतिमभागो । एवंविहजहण्णहाण पडुडि सङ्काणाणमांत भागवड्डि कंदयस लागाओ घेत्तूण वड्डीए पुंजं काढूण हवेयव्वा । एवमसंखेज्जभागवड्डिकंदयसलागाओ विउब्विणिदूण' पुध ह्वेयव्त्राओ । तहा संखेज्जभागवड्डि-संखेज गुणवड्डि-असंखेज्जगुणवड्डि-अणंत गुणवड्डीणं च कंदयसलागाओ उव्वणि ध ध वेयव्वाओ । तासि सल्लागाणं पमाणं वुच्चदे । तं जहा -- एगड्डाअंतरे अनंतभागवड्डीयो पंचण्णं कंदयाणमण्णोष्णव्भासमेत्तीयो चचारिकंदयवरगावगमेत्तीयो छकंदयघणमेत्तीयो [ चत्तारिकंदयवग्गमेत्तीयो ] कंदयमेत्तीयो च । तासि संदिट्ठी १०२४२५६ २५६ २५६ २५६ ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ १६ १६ १६ १६ ४ | असंखेज्जभागवड्डीओ एगकंदयवग्गावग्गमेत्तीयो तिष्णिकंदयघणमेत्तीयो तिण्णिकंदयवग्गमेत्तीओ कंदयमेत्तीओ च । एदासिं संदिट्ठी - २५६ ६४ ६४ ६४ १६ १६ १६ ४ । संखेज्जभागवड्डीयो एगकंदयघणमेत्तीयो बेकंदयवग्गमेत्तीयो कंदयं च । एदासिं संदिट्ठी - ६४ १६ १६ ४ । संखेज्जगुणवड्डीयो कंदयवग्ग-कंदयमेत्तीओ । एदासिं संदिट्ठी - १६ ४ । असंखेजगुणवड्डीयो कंदयमेत्तीओ । तासि संदिट्ठी ४ । अहंकमेकं ।
प्रमाण
स्पर्द्धक होता है। इसमेंसे एक कम करने पर स्पर्धकका अन्तर होता है । ऊवक स्पर्द्धकके अन्तरसे अष्टांक स्पर्द्धकका अन्तर अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार स्थानान्तर के गुणकारका अनन्तवां भाग है । इस प्रकार के जघन्य स्थानसे लेकर सब स्थानोंकीअनन्तभागवृद्धिकाण्डकशलाकाओं को ग्रहण कर वृद्धिका पुंज करके स्थापित करना चाहिये । इसी प्रकार असंख्यात भागवृद्धिकाण्डकशलाकाओं को उत्पन्न करके पृथक् स्थापित करना चाहिये । तथा संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यात गुणवृद्धि और अनन्तगुणवृद्धिको काण्डकशलाकाओंको उत्पन्न करके पृथक् पृथक् स्थापित करना चाहिये। उन शलाकाओंका बतलाते है । वह इस प्रकार है-एक स्थानके भीतर अनन्तभागवृद्धियां पांच काण्डकोंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि ( ४ x ४ X ४ x ४×४ = १०२४ ) के बराबर, चार काण्डकोंके वर्गके वर्ग प्रमाण, छह काण्डकोंके घन प्रमाण, [ चार काण्डकोंके वर्ग प्रमाण और एक काण्डक प्रमाण हैं । इनकी संदृष्टि - १०२४, २५६, २५६, २५६, २५६, ६४, ६४, ६४, ६४, ६४, ६४; १६, १६, १६, १६, ४ । असंख्यात भागवृद्धियां एक काण्डकके वर्गावर्ग प्रमाण, तीन काण्डकोंके घन प्रमाण, तीन काण्डकोंके वर्ग प्रमाण और एक काण्डक प्रमाण हैं । इनकी संदृष्टि २५६; ६४, ६४, ६४, १६, १६, १६४ । संख्यात भागवृद्धियां एक काण्डकके घन प्रमाण, दो काण्डकोंके वर्ग प्रमाण और एक काण्डक प्रमाण हैं । इनकी संदृष्टि - ६४; १६, १६; ४ । संख्यातगुणवृद्धियां एक काण्डकके वर्ग व काण्डक प्रमाण हैं । इनकी संदृष्टि - १६, ४ । असंख्यात
१ मप्रतिपाठोऽयम् । अत्रा प्रतिषु ' - सलागाग्रो एउब्विणिदूण' ताप्रतौ 'सलागाओ [ ए ] उच्चिणिदूण' इति पाठः ।
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