Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २०२] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया
[१३१ गमणाणुववत्तीदो। चत्तारिअंक पि ण होदि, कंदयमेत्तअसंखेजभागवड्डीयो गंतूण पढमासंखेज्जभागवड्डी होदि त्ति तत्थेव भणिदत्तादो। पंचकं पि ण होदि. संखेजभागब्भहियं कंदयं गंतूण संखेज्जगुणवड्डी होदि त्ति परविदत्तादो। छअंकं पि ण होदि, कंदयमेत्तसंखेज्जगुणवड्डीयो गंतूण असंखेज्जगुणवड्ढी होदि त्ति वयणादो। सत्तंकं पि ण होदि, कंदयमेत्तअसंखेज्जगुणवड्डीयो गंतूण अणंतगुणवड्वी होदि त्ति वयणादो। तदो परिसेसयादो जहण्णट्ठाणमटकं सि सिद्धं । किमट्ठकं णाम ? हेहिमउव्वंकं सव्वजीवरासिणा गुणिदे जं लद्धं तेत्तियमेत्तेण हेडिमउव्वंकादो जमहियं हाणं तमहंकं णाम । हेट्ठिमउव्वंक रूवाहियसव्वजीवरासिणा गुणिदे अट्ठकमुप्पज्जदि त्ति भणिदं होदि' ।
. हेहिमाणंतरादो अgकट्ठाणंतरमणंतगुणं । तं जहा-अणंतरहेहिमउव्वंके रूवाहियसव्वजीवरासिणा मागे हिदे लद्धं रूवूणमुव्वंकहाणंतरं होदि। सव्वजीवरासिणा हेडिमउव्वंकं गुणिय रूवूणे कदे अट्ठकहाणंतरं होदि। उव्यंकटाणंतरादो अटुकट्ठाणंतरमणंतगुणं। को गुणगारो ? रूवाहियसव्वजीवरासिणा गुणिदसव्वजीवरासी । दोसु वि वड्डीसु सग
ऊर्वक नहीं होता है, क्योंकि, ऊर्वकके होनेपर समस्त काण्डक प्रमाण गमन घटित नहीं होता है। वह चतुरंक भी सम्भव नहीं है, क्योंकि, काण्डक प्रमाण असंख्यातभागवृद्धियां जाकर प्रथम असंख्यातभागवृद्धि होती है, ऐसा वहां ही कहा गया है। वह पंचाक भी नहीं हो सकता है, क्योंकि, संख्यातवें भागसे अधिक स्थानोंका काण्डक जाकर संख्यातगुणवृद्धि होती है, ऐसा बतलाया गया है। वह षष्ठांक भी सम्भव नहीं है, क्योंकि, काण्डक मात्र संख्यातगुणवृद्धियां जाकर असंख्यातगुणवृद्धि होती है । ऐसा वचन है। वह सप्तांक भी नहीं हो सकता है, क्योंकि काण्डक प्रमाण असंख्यातगुणवृद्धियां जाकर अनन्तगुणवृद्धि होती है, ऐसा वचन है । अतएव परिशेष स्वरूपसे वह जघन्य स्थान अष्टांक ही है, यह सिद्ध होता है।
शंका-अष्टांक किसे कहते हैं ?
समाधान-अधस्तन ऊर्वकको सब जीवराशिसे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतने मात्रसे जो अधस्तन ऊवकसे अधिक स्थान है उसे अष्टांग कहते हैं। अधस्तन ऊर्वकको एक अधिक सव जीवराशिसे गुणित करनेपर अष्टांक उत्पन्न होता है, यह उसका अभिप्राय है।
अधस्तन स्थानके अन्तरसे अष्टांकस्थानका अन्तर अनन्तगुणा है। वह इस प्रकारसेअनन्तर अधरतन ऊर्वकमें एक अधिक सब जीवराशिका भाग देनेपर जो लब्ध हो उसमेंसे एक कम करनेपर उर्वकस्थानका अन्तर होता है। अधस्तन ऊवकको सब जीवराशिसे गुणित करके एक कम करनेपर अष्टांकस्थानका अन्तर होता है। ऊर्वकस्थानके अन्तरसे अष्टांकस्थानका अन्तर अनन्तगुणा है। गुणकार क्या है? एक अधिक सब जीवराशिसे गुणित सब जीवराशि गुणकार है । दोनों ही वृद्धियोंको अपनी अपनी स्पर्द्धकशलाकाओंसे अपवर्तित करनेपर
१ पुणो अवरमेगमसंखेजगुणवट्टिविसयं गंतूण जं चरिममुव्वंकटाणमवष्टिदं तम्मि रूवाहियसव्वजीवरासिणा गुणिदे पढममकहाणमप्पजदि । जयध. अ. प. ३६८. ।
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