Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २००.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [१११ कम्मपदेसा विसेसाहिया ३०७२ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? उक्कस्सवग्गणकम्मपदेसमेत्तो। एवं दुचरिमादिअणुभागबंधट्ठाणाणं पि वत्तव्यं । णवरि जहण्णबंधहाणादो' विदियबंधट्ठाणमणंतगुणं । तदियबंधटाणमणंतगुणं । एवं णेयव्वं जाव अपुव्वसंजदो त्ति । तत्तो अणुभागबंधहाणाणि छविहाए वड्डीए गच्छंति जाव उकस्सअणुभागबंधहाणे त्ति । जहण्णहाणं मोत्तूण सेससव्वहाणेसु जहपणवग्गण-जहण्णफद्दयअविभागपलिच्छेदेहितो उकस्सवग्गण-उक्करसफद्दयअविभागपलिच्छेदा अणंतगुणा । को गुणगारो ? सव्वजोवेहि अणंतगुणो । फद्दयंतराणि विसरिणाणि, छबिहवड्डीए अणुभागबंधयुड्डिदसणादो। एवं हदसमुप्पत्तियहदहदसमुप्पत्तियहाणाणं पि अविभागपडिच्छेदपरूवणा कायव्वा । विभागपडिच्छेदपरूएवमवणा समत्ता।
ठाणपरूवणदाए केवडियाणि हाणाणि ? असंखेजलोगहाणाणि ? एवदियाणि हाणाणि ॥ २००॥
किं ठाणं णाम ? एगजीवम्मि एक्कम्हि समए जो दीसदि कम्माणुभागो तं ठाणं णाम । तं च ठाणं दुविहं-अणुभागबंधट्ठाणं अणुभागसंतट्ठाणं चेदि । तत्थ जं बंधेण णिप्फण्णं तं बंधट्ठाणं णाम । पुव्वबंधाणुभागे धादिजमाणे जं बंधाणुभागेण सरिसं
कितना है ? उत्कृष्ट वर्गणाके कर्मप्रदेशोंके बराबर है। ___इसी प्रकार द्विचरमादि अनुभागबन्धस्थानोंका भी कथन करना चाहिये। विशेष इतना है
गीय बन्धस्थान अनन्तगुणा है। उससे तृतीय बन्धस्थान अनन्तगुणा है । इस प्रकार अपूर्वकरणसंयत तक ले जाना चाहिये। उससे आगेके अनुभागबन्धस्थान उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान तक छह प्रकारकी वृद्धिसे जाते हैं। जघन्य स्थानको छोड़कर शेष सब स्थानों में जघन्य वर्गणा व जघन्य स्पर्धकके अविभागप्रतिच्छेदोंसे उत्कृष्ट वर्गणा व उत्कृष्ट स्पर्द्धकके अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? गुणकार सब जीवोंसे अनन्तगुणा है। स्पर्द्धकान्तर विसदृश हैं, क्योंकि, छह प्रकारकी वृद्धि द्वारा अनुभागबन्धकी वृद्धि देखी जाती है। इसी प्रकारसे हतसमुत्पत्तिक और हतहतसमुत्पत्तिक स्थानोंके भी अविभाग प्रतिच्छेदोंकी प्ररूपणा करनी चाहिये । इस प्रकार अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणा समाप्त हुई।
स्थानप्ररूपणतासे स्थान कितने हैं ? असंख्यात लोक प्रमाण हैं। इतने स्थान हैं ॥ २००॥
स्थान किसे कहते हैं ? एक जीवमें एक समयमें जो कर्मानुभाग दिखता है उसे स्थान कहते हैं । वह स्थान दो प्रकार का है अनुभागबन्धस्थान और अनुभागसत्त्वस्थान । उनमेंसे जो बन्धसे उत्पन्न होता है वह बन्धस्थान कहा जाता है। पूर्व बद्ध अनुभागका घात किये जानेपर जो बन्ध
.... १ ताप्रतिपाठोऽयम् । अ-आप्रत्योः 'बंधहाणादो चडियबंधटाणमणंतगुणं तदिय' मप्रतौ 'बंधहणादो चडियबंधहाणमणंतगुणं विदियबंधहाणमंणतगुणं तदिय' इति पाठः । २ आपली 'णिफलं' इति पाठः। ......
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