Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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११८]
छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[ ४, २, ७, २०१.
वरणीयअणुभागफद्दयपंतीदो वीरियंतराइयस्स अणुभागफद्दयपंती बहुआ । केलियमेत्तेण ? लदास माणफदएहि दारुसमाणफद्दयाणं अनंतिमभागेण च । तदो चदुण्हं कम्माणं अणुभागस्स सरिसत्तं ण जुज्जदे । भणिदं च सुत्ते सरिसत्तं । तेण अस रिसधणिय एगोलीपरमाणमभागे मेलाविदे वि णाणुभागट्ठाणं होदिति णव्वदे । एदं जहण्णहाणं सव्वजीवेहि अनंतगुणेण गुणगारेण गुणिदे सुहुमसांपराइयदु चरिमसमए पबद्ध विदियाणुभाग
माणं होदि । एदम्मि जहण्णद्वाणं सोहिय रूवणे कदे दोष्णं द्वाणाणं अंतरं होदि । वडियसलागाओ विरलिय वड्डिदअणुभागं समखंड करिय दिण्णे एकेकस्स रूवस्स वयमाणं होदि । एदाओ फदयवड्डीयो, जहण्णट्ठाणचरिमफद्दयस्स उवरि पक्खिविमात्तदो । कधमेदासि 'फदयसण्णा १ अणुभागं मोत्तूण अक्कमेण वड्डिदूण कमवडिमुवगदाणुभाग बुड्डीए चेव फद्दयत्तुवलंभादो । एत्थ पढमरूवधरिदं जहण्णट्ठाणचरिमफदयस्वर पक्खित्ते वड्ढिफएस पढमफद्दयं होदि । फद्दयवड्डीरूवूणा फहयंतरं होदि । फद्दयवड्डी चैव एगफद्दयवग्गणाहि ऊणा हेडिम उवरिमवग्गणाणमंतरं होदि । पुणो विदियफद्दयं घेत्तूण पक्खेव पढमफद्दयं पडिरासिय पक्खित्ते विदियफद्दयं होदि । रूवूणा वड्डी
पंक्तिसे वीर्यान्तरायके अनुभाग स्पर्द्धकों की पंक्ति बहुत है । कितनी मात्र से वह बहुत है ? वह लता समान अनुभागस्पर्द्धकों तथा दारु समान अनुभागस्पर्द्धकोंके अनन्तवें भागमात्र अधिक है । इसी कारण उक्त चार कर्मों के अनुभागकी समानता उचित नहीं है । परन्तु सूत्र में सदृशता बतलायी गई है। इससे जाना जाता है कि असमान धनवाले एक पंक्ति रूप परमाणुओंके अनुभाग के मिलानेपर भी अनुभागस्थान नहीं होता है ।
इस जघन्य स्थानको सब जीवोंसे अनन्तगुणे गुणकारके द्वारा गुणित करनेपर सूक्ष्म साम्परायिकके द्विचरम समय में बाँधे गये द्वितीय अनुभागस्थानका प्रमाण होता है । इसमेंसे जघन्य स्थानको घटाकर एक कम करनेपर दोनों स्थानोंका अन्तर होता है । वृद्धिस्पर्द्धक शलाकाओं का विरलन कर वृद्धिंगत अनुभागको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति वृद्धिस्पर्द्धकोंका प्रमाण होता है । ये स्पर्द्धकवृद्धियाँ हैं, क्योंकि, जघन्य स्थानके अन्तिम स्पर्द्धक के ऊपर उनका प्रक्षेप किया जानेवाला है ।
शंका- इनकी स्पर्द्धक संज्ञा कैसे है ?
समाधान - कारण कि अनुभागको छोड़कर युगपत् वृद्धिको प्राप्त होकर क्रमवृद्धिको प्राप्त अनुभागकी वृद्धिके ही स्पर्द्धकपना पाया जाता है । यहाँ प्रथम अंकके ऊपर रखी हुई राशिको जघन्य स्थान सम्बन्धी अन्तिम स्पर्द्धकके ऊपर रखनेपर वृद्धिस्पर्द्धकों में से प्रथम स्पर्द्धक होता है । एक स्पर्द्धकवृद्धि प्रमाण उन स्पर्द्धकोंका अन्तर होता है । एक स्पर्द्धक वर्गणाओंसे हीन स्पर्द्धकवृद्धि ही अधस्तन और उपरिम वर्गणाओंका अन्तर होता है ।
पुनः द्वितीय स्पर्द्धकको ग्रहण कर प्रक्षेपभूत प्रथम स्पर्द्धकको प्रतिराशि करके उसमें मिलाने
१ ताप्रतौ ‘कथं ? एदासिं' इति पाठ: । २ प्रतौ 'कमवड्डीमुवरिगदाणुभाग' इति पाठः ।
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