Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ७, २०१.
तगुणं । पुणो एदिस्से चैव विसोहीए असंखेज्जलोग मेतछट्टाणाणं णाणावरणउकस्साणुभागबंधाणमणंतगुणं । पुणो तम्हि चैव दुचरिमसमए जहण्णविसोहिद्वाणस्स णाणावरणजहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो एदस्स चेव असंखेजलोगमेत्तछहाणाणं णाणावरणउक्कस्साणुभागबंधद्वाणमणंतगुणं । एवं तिचरिमादिसमएस अनंतगुणकमेण ओदारेदव्वं जाव अंतोमुहुत्तं त्ति । पुणो तत्तो मिच्छाइटिस्स सत्थाणुकस्स विसोहिपरिणामस्स जहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज लोग मे त्तछडाणाणं उक्कस्साणुभाबंध द्वाणमतगुणं पुणो तस्सेव सत्थाणजहण्णविसोहिद्वाणस्स जहण्णाणुभागबंधामतगुणं । पुणो एदस्स चैव असंखेज लोगमेत छहाणाण मुक्कस्साणुभागबंध हाणमगुणं ।
दस्वर सव्वविशुद्धअस ण्णिपंचिदियमिच्छाइद्विचरिमसमय उकस्स विसोहिडा - स णाणावरण जहण्णाणुभागबंधहाण मणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोग मेतछठ्ठागाणं णाणावरणउकस्साणु भागबंधद्वाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव चरिमसमए जहण्ण विसोहिद्वाणस्स णाणावरण जहण्णाणुभागबंध द्वाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछडाणाणं णाणावरणउकस्साणुभागबंध द्वाणमणंतगुणं । एवं दुचरिमादिसमएस अनंतगुणाए सेडीए ओदारेदब्बं जाव अंतोमुहुत्तं त्ति । पुणो असण्णिपंचिंदिय सत्थाण उकस्स
ज्ञानावरणका जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर इसी विशुद्धिके असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों में ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर उसी द्विचरम समय में जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर इसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानोंमें ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । इस प्रकार त्रिचरमादि समयोंमें अनन्तगुणित क्रमसे अन्तर्मुहूर्त तक उतारना चाहिये । पुनः उससे आगे मिथ्यादृष्टिके स्वस्थान उत्कृष्ट विशुद्धि परिणाम सम्बन्धी जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर उसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानोंमें उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर उसके ही स्वस्थान जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर इसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों में उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है ।
इसके आगे सर्वविशुद्ध असंज्ञी पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टिके अन्तिम समय में उत्कृष्ट विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर उसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों में ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर उसके ही अन्तिम समयमें जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । फिर उसके ही असंख्यात लोकमात्र षट्स्थानों सम्बन्धी ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है । इस प्रकार द्विचरमादिक समय में अनन्तगुणित श्रेणिसे अन्तर्मुहूर्त तक उतारना चाहिये। फिर असंज्ञी पंचोन्द्रियके स्वस्थान उत्कृष्ट विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य
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