Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, २०१.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया
[१२३ विसोहिहाणस्स णाणावरणजहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणं णाणावरणउकस्साणुभागहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव सत्थाणजहण्णविसोहिहाणस्स णाणावरणजहण्णाणुभागबंधाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव जहण्णविसोहिहाणस्स असंखेज्जलोगमेत्तहाणाणं णाणावरणउक्कस्साणुभागहाणमणंतगुणं ।
पुणो एदस्सुवरि सव्वविसुद्धचरिंदियचरिमसमय उक्कस्सविसोहिहाणस्स णाणावरणजहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछ हाणाणं णाणावरणउकस्साणुभागबंधटाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव चरिमसमए जहण्णविसोहिहाणस्स णाणावरणजहण्णाणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं । पुणो एदस्स चेव असंखेज्जलोगमेत्तछहाणाणं णाणावरणउक्कस्साणुभागबंधटाणमणंतगुणं । एवं दुचरिमादिसमएसु अणंतगुणकमेण ओदारेदव्वं जाव अंतोमुहुत्तं त्ति । पुणो चउरिदियसत्थाणुक्कस्सविसोहिट्ठाणस्स णाणावरणजहण्णाणुभागबंधहाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणं णाणावरणउक्कस्साणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं । पुणो तस्सेव चउरिंदियस्स सत्थाणविसोहिजहण्णहाणस्स' णाणावरणजहण्णाणुभागबंधट्ठाणमणंतगुणं। पुणो तस्सेव जहण्णविसोहिहाणस्स असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणं णाणावरणउकस्साणुभागबंधट्टाणमणंतगुणं ।
अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही असंख्यात लोकमात्र षस्थानों सम्बन्धी ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही स्वस्थान जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही जघन्य विशुद्धिस्थानके असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागस्थान अनन्तगुणा है।
पुनः इसके आगे सर्वविशुद्ध चतुरिन्द्रियके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसीके असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही अन्तिम समयमें होनेवाला जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगणा है। फिर उसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। इसी प्रकार द्विचरकादिक समयोंमें अनन्तगुणित क्रमसे
क उतारना चाहिये । फिर चतुरिन्द्रियके स्वस्थान उस्कृष्ट विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञाना. वरणका जघन्य अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही असंख्यात लोक मात्र षट्स्थानों सम्बन्धी ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभागबन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसी चतुरिन्द्रियके स्वस्थान जघन्य विशुद्धिस्थान सम्बन्धी ज्ञानावरणका जघन्य अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है। फिर उसके ही जघन्य विशुद्धिस्थानके असंख्यात लोक मात्र षटस्थानों सम्बन्धी ज्ञानावरणका उत्कृष्ट अनुभाग बन्धस्थान अनन्तगुणा है।
१ अप्रतौ "सत्थाणविसोहिहाणस्स जहण्णणाणा" इति पाठः।
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