Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ७, २००.
११२ ] होदूण पददि तं पिबंधट्ठाणं चैव, तस्सरिसअणुभागबंधुवलंभादो' । जमणुभागहाणं घादिखमाणं बंधाणुभागहाणेण * सरिसं ण होदि, बंधअहंक- " उव्वंकाणं विश्वाले हेहिम
कादो अर्णतगुणं वरिमअहंकादो अर्णतगुणहीणं होण चेट्ठदि, तमणुभागसंतकम्मणं णाम | पुणो अणुभागबंध द्वाणाणि संतकम्मट्ठाणाणि च असंखेज लोगमेत्ताणि होंति । एत्थ अणुभागबंधाणं संतकम्मद्वाणं चेदि वुत्ते एगजीवम्हि अवट्ठिदकम्मपरमाणुसु जो उक्कस्साणुभाग सहिदकम्मपरमाणू सो चेव द्वाणं, भिण्णपरमाणुट्ठिदअणुभागाणं अप्पिदपरमाणुदिअणुभागेण सह पवुत्तीए अभावेण बुद्धीए पत्तएयत्ताणं एयट्ठाणत्तविरोहादो । एक म्हि परमाणुम्हि जदि ट्ठाणं होदि तो अनंताणं तत्थतणवग्गणाणं फहयाणं च अभावो होदित्ति भणिदे—ण, फद्दय-वग्गणसण्णिदाणुभागाणं सव्वेसि पि तत्थेवलंभादो । Source एस वहाण प्पसिद्धो त्ति उत्ते - ण, द्विदिपरूवणाए चरिमणिसेगम्मि एगपरमाणुकालं चेव घेत्तूण उकस्सट्ठिदिपरूवणदंसणादो । ण परमाणुकालसंकलणा सजादि -
५.
अनुभागके सदृश होकर पढ़ता है वह भी बन्धस्थान ही है, क्योंकि, उसके सदृश अनुभागबन्ध पाया जाता है | घाता जानेवाला जो अनुभागस्थान बन्धानुभागके सदृश नहीं होता है, किन्तु बन्ध सदृश अष्टांक और ऊर्वकके मध्य में अधस्तन ऊर्वकसे अनन्तगुणा और उपरिम अष्टां अनन्तगुणा हीन होकर स्थित रहता है वह अनुभाग सत्कर्मस्थान है । अनुभागबन्धस्थान और सत्कर्मस्थान असंख्यात लोक मात्र होते हैं । यहाँ अनुभागबन्धस्थान और सत्कर्मस्थान, ऐसा कहने पर एक जीव में अवस्थित कर्मपरमाणुओंमें जो उत्कृष्ट अनुभाग सहित कर्मपरमाणु है वही स्थान होता है, क्योंकि भिन्न परमाणुओं में स्थित अनुभागों की विवक्षित परमाणुमें स्थित अनुभागके साथ प्रवृत्ति न होनेसे बुद्धिसे एकताको प्राप्त हुए उनकी एकस्थानताका विरोध है ।
शंका- यदि एक परमाणुमें स्थान होता है तो उनमें अनन्त वर्गणाओं और स्पर्द्धकों का अभाव होता है ?
समाधान - ऐसा कहनेपर उत्तर देते हैं कि नहीं, क्योंकि, स्पर्द्धक और वर्गणा संज्ञावाले सभी अनुभाग वहाँ ही पाये जाते हैं ।
शंका- - अन्यत्र यह व्यवहार प्रसिद्ध नहीं है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, स्थितिप्ररूपणा में अन्तिम निषेकमें एक परमाणुकालको ही ग्रहण कर उत्कृष्ट स्थितिकी प्ररूपणा देखी जाती है ।
परमाणुकालसंकलना सजाति व विजाति स्वरूप नहीं ग्रहण की जाती है, क्योंकि, वैसा
१ भागसंतद्वाणवा देण जमुप्पण्णमरणुभागसंताणं तं पि णवबंद्वाणाणि त्ति घेत्तव्वं, बंधहाणसमाणतादो । जयध . प ३१३. । २ ताप्रतौ 'बंधाणुभागहाणेहि' इति पाठः । ३ किमडकं णाम १ श्रृणंतगुणवडी । कधमेदिस्से कसण्णा ? अण्ह अंकाणमणंतगुणबढि त्ति ठवणादो । जपध. प्र. प. ३५८.। ४ मतौ 'वृत्तीए' इति पाठः । ५ अ श्रापत्योः 'हिद' इति पाठः ।
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