Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, १६६.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [१०९ णविसेसाणं जदि दिवडगुणहाणी भागहारो होदि तो णिसेयभागहारचदुब्भागमेत्तवग्गणविसेसाणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए गुणहाणीए अद्धमागच्छदि । तम्मि दिवड्डगुणहाणिम्मि पक्खित्ते दोगुणहाणीयो भागहारो होदि । एदेण सबदव्वे ३०७२ भागे हिदे तदित्थवग्गणपमाणं होदि । संदिट्ठीए तस्स पमाणमेदं १९२।
अधवा दिवड्डगुणहाणिखेत्तं ठविय | चत्तारि फालीयो कादूण एके किस्से फालीए विक्खंभो णिसेयभागहारस्स चदुब्भागमेत्तो, आयामो पुण दिवड्वगुणहाणिमेत्तो । एत्थ तिण्णिफालीयो मोत्तूण सेसेगफालिं घेत्तूण आयामेण तिण्णि खंडाणि करिय सेसतीसु फालीसु समयाविरोहेण ढोइदे विगुणहाणिमेत्तायाम-णिसेगभागहारतिपिणचदुब्भागमेत्त' वग्गणविक्खंभखेत्तं होदि ।।
एवं सयलाए पढमगुणहाणीए चडिदाए तिण्णिगुणहाणी' भागहारो होदि । तं जहा–एगगुणहाणी चडिदा ति एगरूवं विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थे कदे तत्थुप्पण्णरासिणा दिवड्डगुणहाणीए गुणिदाए तिण्णिगुणहाणीयो भागहारो होदि । कुदो ? पढमगुणहाणिपढमवग्गणकम्मपदेसेहिंतो विदियगुणहाणिपढमवग्गणकम्मपदेसा
विशेषोंका यदि डेढ़ गुणहानि भागहार होता है तो निषेकभागहारके चतुर्थ भाग मात्र वर्गणाविशेषोंका कितना भागहार होगा, इस प्रकार फलगुणित इच्छा राशिको प्रमाण राशिसे अपवर्तित करनेपर गुणहानिका अर्ध भाग आता है। उसको डेढ़ गुणहानिमें मिलानेपर दो गुणहानियाँ भागहार होती हैं। इसका समस्त द्रव्यमें भाग देनेपर ( ३०७२ - १५ = १६२) वहाँकी वर्गणाका प्रमाण होता है । संदृष्टिमें उसका प्रमाण यह है-१६२।। __अथवा, डेढ़ गुणहानि प्रमाण क्षेत्रको स्थापितकर (संदृष्टि मूलमें देखिये) चार फालियाँ करके, इनमेंसे एक एक फालिका विष्कम्भ निषेकभागहारके चतुर्थ भाग प्रमाण होता है परन्तु आयाम डेढ़ गुणहानि प्रमाण होता है। इनमेंसे तीन फालियोंको छोड़कर शेष एक फालिको ग्रहणकर और आयामकी ओरसे तीन खण्ड करके आगमानुसार शेष तीन फालियोंमें जोड़ देनेपर दो गुणहानि मात्र आयामरूप और निषेकभागहारके तीन चतुर्थ भाग मात्र वर्गणा विष्कम्भ रूप क्षेत्र होता है।
इस प्रकार समस्त प्रथम गुणहानि जानेपर तीन गुणहानियाँ भागहार होती हैं। यथा-चूंकि एक गुणहानि गये हैं, अतः एक अंकका विरलनकर दुगुना करके परस्पर गुणित करनेपर जो राशि उत्पन्न हो उससे डेढ़ गुणहानिको गुणित करनेपर तीन गुणहानियाँ भागहार होती हैं, क्योंकि, प्रथम गुणहानिकी प्रथम वर्गणाके कर्मप्रदेशोंसे द्वितीय गुणहानिकी प्रथम वर्गणाके कर्मप्रदेश आधे
१ मप्रती "तिण्णिचदुब्भागहारचदुब्भागमेत्त' इति पाठः। २ प्रतिषु 'गुणहाणिभागहारो' इति पाठः।
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