Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ७, ७६. ] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं
[४४ ओरालियसरीराणुमागो कधमणंतगुणो ? ण च अंतरंगवावदकम्मे हितो. बहिरंगवावदकम्माणमणुभागेण महल्लत्तं, 'विरोहादो त्ति ? ण एस दोसो, पयडि विसेसेण अणंतगुणहीणत्ताविरोहादो। को पयडि विसेसो ? ओरालियसरीरमिच्छत्ताणं पसत्थापसत्थत्तं । कधमोरालियसरीरस्स पसत्थत्तं णयदे ? मिच्छत्तस्सेव मिच्छाइट्ठिम्हि चेव ओरालियसरीरस्स बंधाणुवलंभादो णव्वदे।
केवलणाणावरणीयं केवलदसणावरणीयं असादवेदणीयं वीरियंतराइयं च चत्तारि वि तुल्लाणि अणंतगुहीणाणि ॥ ७६ ॥
एदासिं चदुपणं पयडीणमुकस्साणुभागस्स मिच्छाइट्ठी सव्वसंकिलिट्ठो मिच्छत्तस्सेव सामी । तदो तत्तो एदासिमणंतगुणहीणत्तं ण जुञ्जदे ? ण, पय डिविसेसेण तदुववत्तीदो। कुदो पयडि विसेसो णबदे ? मिच्छत्तोदए संते केवलणाणावरणादिसव्वपयडीणं बंध-संत
मिथ्यात्व प्रकृतिके अनुभागकी अपेक्षा पुद्गलविपाकी औदारिक शरीरका अनुभाग अनन्तगुणा कैसे हो सकता है ? यदि कहा जाय कि अन्तरंगमें प्रवृत्त हुए कर्मोंकी अपेक्षा बहिरंगमें प्रवृत्त हुए कर्म अनुभागकी अपेक्षा महान होते हैं सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, ऐसा मानने में विरोध आता है।
. समाधान--यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, प्रकृतिविशेष होनेके कारण औदारिक शरीरकी अपेक्षा मिथ्यात्बके अनन्तगुणे हीन होने में कोई विरोध नहीं आता।
शंका-वह प्रकृतिविशेष, क्या है ? समाधान-औदारिक शरीर प्रशस्त है और मिथ्यात्व अप्रशस्त है, यही यहाँ प्रकृतिविशेष है।
शंका-औदारिक शरीर प्रशस्त है. यह किस प्रमाणसे जाना जाता है.? । - समाधान-जिस प्रकार मिथ्यात्वका 'बन्ध एक मात्र मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें होता है इस प्रकार औदारिक शरीरका बन्ध केवल वहाँ ही नहीं होता। इसीसे औदारिक शरीरकी प्रशस्तता जानी जाती है।
केवल ज्ञानावरणीय, केवलदर्शनावरणीय, असातावेदनीय और वीर्यान्तराय ये चारों ही प्रकृत्तियाँ तुल्य होकर उससे अनन्तगुणी हीन हैं ।। ७६ ॥
शंका-चूँकि मिथ्यात्वके समान इन चार प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागका स्वामी सर्वसंक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि जीव ही होता है, अतएव मिथ्यात्व प्रकृतिकी अपेक्षा ये चार प्रकृतियाँ अनन्तगुणीहीन नहीं बन सकती ?
समाधान नहीं, क्योंकि, प्रकृति विशेष होनेके कारण वे चारों ही प्रकृतियाँ अनन्तगुणी हीन बन जाती हैं।
शंका-इनकी प्रकृतिगत विशेषताका परिज्ञान किस प्रमाणसे होता है ? समाधान--मिथ्यात्वका उदय होनेपर केवलज्ञानावरणादि सब प्रकृतियोंके बन्ध व सत्त्वका १ प्रतिषु 'विरोहादि त्ति' इति पाठः।
छ. १२-७
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