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artisan daणाखंड
[ ४, २, ७, १९९.
९८ ] एगपरमाणुम्हि अवद्विदस्स 'अविणाभावीणमणुभागपदेसाणं परूवणदुवारेण तप्परूवणचादो | ण च अणिच्छिदवदिरेगस्स अण्णए णिच्छओ अत्थि, अण्णत्थ तहाणुवलं भादो ।
पुणो एदं पढमफद्दयं पुध दृविय पुचिल्लपुंजम्मि एगपरमाणुं वेत्तूण पण्णच्छेद ए कदे सव्वजीवेहि अनंतगुणमेत्तअविभागवड्डिच्छेदेहि अंतरिदूण विदियफद्दयस्स अण्णो बग्गो उपजदि । संदिट्ठीए तस्स पमाणमेदं [ १६ ] एदेण कमेण अभवसिद्धिए हि अनंतगुणे सिद्धाणमणंतभागमेत्ते समाणधणपरमाणू घेत्तूण परमाणुमेत्तवग्गेसु उप्पाइदेसु विदियफद्दयस्स आदिवग्गणा होदि । एदं पढमफद्दय चरिमवग्गणाए उवरि अंतरमुल्लंघिय वेदव्वं । एदेण कमेण वग्ग वग्गणाओ फदयाणि जाणिदूण उप्पादेदव्वाणि जाव पुव्विल परमाणुपुंजो समत्तो चि । एवं फद्दयरचणाए कदाए अभवसिद्धिएहि अनंतगुणाणि सिद्धाणमणंत भागमेत्ताणि फहयाणि वग्गणाओ च उप्पण्णाणि हवंति । एत्थ चरिमफद्दयचरिमवग्गणाए एगपरमाणुम्हि ट्ठिदिअणुभागो जहण्णहाणं ।
समाधान- नहीं, क्योंकि इसी अनुभाग स्पर्द्धकके एक परमाणुमें अवस्थित अविभागी अनुभाग प्रदेशोंकी प्ररूपणा द्वारा उक्त रचनाकी प्ररूपणा की गई है । दूसरे, जिसे व्यतिरेकका निश्चय नहीं है उसके अन्वय के विषयमें निश्चय नहीं हो सकता; क्योंकि, अन्यत्र वैसा पाया नहीं जाता ।
इस प्रथम स्पर्द्धकको पृथक् स्थापित करके पूर्वोक्त परमाणुपुंजमेंसे एक परमाणुको ग्रहण कर बुद्धिसे छेद करनेपर सब जीवोंसे अनन्तगुणे मात्र अविभागप्रतिच्छेदों के द्वारा अन्तर करके द्वितीय स्पर्द्धकका अन्य वर्ग उत्पन्न होता है । संदृष्टिमें उसका प्रमाण यह है - १६ । इस क्रम से अभव्यसिद्धिकोंसे अनन्तगुणे व सिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र समान धनवाले परमाणुओंको ग्रहण करके परमाणु प्रमाण वर्गों के उत्पन्न करानेपर द्वितीय स्पर्द्धककी प्रथम वर्गणा होती है । इसे प्रथम स्पर्द्धककी अन्तिम वर्गणाके ऊपर अन्तरको लाँघ कर स्थापित करना चाहिथे । इस क्रमसे वर्ग, वर्गणाओं और स्पर्द्धकोंको जानकर पूर्वोक्त परमाणुपुंजके समाप्त होने तक उत्पन्न कराना चाहिये । इस प्रकार स्पर्द्धक रचनाके किये जानेपर अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग मात्र स्पर्द्धक व वर्गणायें उत्पन्न होती हैं। यहां अन्तिम स्पद्ध ककी अन्तिम वर्गणा सम्बन्धी एक परमाणु में स्थित अनुभाग जघन्य स्थान रूप है ।
१ ताप्रतौ ' श्रविणाभावीण' इति पाठः ।
२ प्रतिषु 'विभागवड्डिच्छेदेहि' इति पाठः ।
३ प्रतिषु 'भवसिद्धिएहि' इति पाठः ।
४ अणुभागड़ाणं णाम चरिमफद्दयचरिमवग्गणाए एगपरमाणुम्मि दिअणुभागाविभागपलिच्छेदकलावो । जयध. अ. प. ३५६.
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