Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१०० ].
छक्खंडागमे बेयणाखंड
[ ४, २, ७, १६६.
तत्थ पमाणं उच्चदे । तं जहा - अणंताओ वग्गणाओ अभवसिद्धिएहि अनंतगुणाओ सिद्धाणमणंत भागमेत्ताओ । पमाणपरूवणा गदा ।
अप्पा बहुगं उच्चदे । सव्वत्थोवा जहण्णियाए वग्गणाए अविभागपडिच्छेदा । उक्कस्सियाए वग्गणाए अविभागपडिच्छेदा अनंतगुणा । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतभागमेत्तो । कुदो १ चरिमसमय सुहुम संम्पराइयज हण्णबंधग्गहणादो तत्थावहिदफद्दयंत रुव लं भादो । अजहण्ण-अणुक्कस्सवग्गणा विभागपलिच्छेदा अनंतगुणा । को गुणगारो ! अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतभागमेत्तो । एसा परूवणा एगोलिमस्सिदूण कदा, अण्णा उक्कस्तवग्गणादो अजहण्ण-अणुकरसवग्गणाए अनंतगुणताणुववत्तदो ।
संहि फद्दयपरूवणा तिविहा - परूवणा पमाणमप्पाबहुगं चेदि । परूवणा सुगमा, अविभागपडिच्छेद परूवणाए चैव परुविदत्तादो । संपहि फदयाणं पमाणं उच्चदे - अणंताहि वग्गणाहि सव्वत्थ अवट्टिदसंखाहि एगं फद्दयं होदि । ताणि च जहण्णबंधट्ठाणे अभवसिद्धिएहि अनंतगुणाणि सिद्धाणमणंतभागमेत्ताणि । पमाणं गदं ।
अप्पा बहुगं उच्चदे - सव्वत्थोवा जहण्णफद्दयअविभागपडिच्छेदा । उक्क सफद्दयाविभागपडिच्छेदा अनंतगुणा । अजहण्ण-अणुक्कस्सफद्दयाणमविभागपडिच्छेदा अनंत
अब प्रमाणका कथन करते हैं। यथा- वर्गणाएं अनन्त हैं जो अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणी हैं। और सिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र हैं। प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई ।
अब अल्पबहुत्व कहते हैं - जघन्य वर्गणा में अविभागप्रतिच्छेद सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अगन्तवें भाग मात्र गुणकार है । कारण कि यहाँ अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्प रायिकके जघन्य बन्धका ग्रहण करनेसे वहाँ अवस्थित स्पर्द्धकका अन्तर उपलब्ध होता है । उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र गुणकार है । यह प्ररूपणा एक श्रेणिका आश्रय करके की गई है, क्योंकि, इसके बिना उत्कृष्ट वर्गणाकी अपेक्षा अजघन्यअनुत्कृष्ट वर्गणा में अनन्तगुणत्व नहीं बन सकता ।
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स्पर्द्धकप्ररूपणा तीन प्रकारकी है- प्ररूपणा प्रमाण और अल्पबहुत्व । प्ररूपणा सुगम है, क्योंकि, अविभागप्रतिच्छेद प्ररूपणा से ही उसकी प्ररूपणा हो जाती है। अब स्पद्ध कोंका प्रमाण कहते हैं । सर्वत्र अवस्थित संज्ञावाली अनन्त वर्गणाओंसे एक स्पर्द्धक होता है । वे जघन्य बन्धस्थानमें अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणे व सिद्धों के अनन्तवें भाग मात्र होते हैं। प्रमाण समाप्त हुआ ।
अल्पबहुत्व कहते हैं - जघन्य स्पर्द्धकके अविभागप्रतिच्छेद सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट स्पर्द्धकके अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्पर्द्धकोंके अविभागप्रतिच्छेद
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