Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, १९९.], वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया
१०४ अवहिरिजमाणासु वारं पडि वारं पडि एगेगो वग्गणविसेसो अवचिदे । पुणो एत्थ अवणिदविदियवग्गणाओ दिवड्डगुणहाणिमेत्ताओ होति । पुणो अवणिदसेसा दिवड्गुणहाणिमेत्ता वग्गणविसेसा अस्थि । सव्वे वि विदियवग्गणपमाणेण अवहिरिञ्जमाणा एक पि विदियवग्गणपमाणं ण पूरेति, रूवूणणिसेयभागहारमेत्तविसेसेहि एगविदियणिसेगुप्पत्तीदो। ण च दिवड्डगुणहाणिमेत्तविसेसा रूवूणणिसेगमागहारमेत्तविसेसा होति, गुणहाणीए अद्धरूवूणमेत्तविसेसेहि ऊणस्स तप्पमाणत्तविरोहादो।
पुणो एदस्स विरलणे भण्णमाणे स्वणणिसेगमागहारेण दिवड्डगुणहाणिमोवट्टिय जं लद्धं तं विरलणमिदि भाणिदव्वं । एदम्मि दिवड्डगुणहाणीए पक्खित्ते विदियणिसेगमागहारो होदि। तस्स पमाणमेदं ६४ । एदेण सव्वदव्वे भागे हिदे विदियवग्गणदव्वं होदि । अधवा, दिवड्डगुणहाणिक्खेत्तं ठविय 'एगवग्गणविसेस'विखंभेण दिवड्डगुणहाणिआयामेण च एकोलीए फालिय रूवूणणिसेयभागहारमेत्तवग्गणविसेसवि
विशेष अवस्थित रहता है। अब यहाँ अपनीत द्वितीय वर्गणाऐं डेढ़ गुणहानि मात्र होती हैं। अपनयनसे शेष रहे वर्गणाविशेष डेढ़ गुणहानि मात्र होते हैं। ये सभी द्वितीय वर्गणाके प्रमाणसे अपहृत होकर एक भी द्वितीय वर्गणाके प्रमाणको पूरा नहीं करते हैं, क्योंकि, एक कम निषेकभागहार प्रमाण विशेषोंका आश्रयकर एक द्वितीय निषेक उत्पन्न होता है। परन्तु डेढ़ गुणहानि मात्र
नषेकभागहार मात्र विशेष नहीं होते हैं, क्योंकि, गुणानिके एक अक कम अध भाग मात्र विशेषोंसे हीनके उतने मात्र होनेका विरोध है।
पुनः इसके विरलनका कथन करनेपर एक कम निषेकभागहारसे डेढ़ गुणहानिको अप वर्तितकर जो लब्ध हो वह विरलनका प्रमाण होता है, ऐसा कहलाना चाहिये । इसको डेढ़ गुण हानिमें मिलानेपर द्वितीय निषेकका भागहार होता है। उसका प्रमाण यह है- १२+३ = ६४। इसका समस्त द्रव्यमें भाग देनेपर द्वितीय वर्गणाका द्रव्य होता है (३०७ : ६४ =२४०)। अथवा, डेढ़ गुणहानि मात्र क्षेत्रको स्थापित कर (मूलमें देखिये) उसे एक वर्गणाविशेषके विस्तार रूपसे और डेढ़ गुणहानिके आयाम रूपसे एक श्रेणिसे फाड़कर एक
इति पाठः।
१. ताप्रतौ एवंविधात्र संदृष्टिः २. प्रतिषु 'विसेसे' इति पाठः।
छ. १२-१४.
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