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४, २, ७, १७७.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे पढमा चूलिया [८१
अधापवत्तसंजदस्स गुणसेडिगुणो असंखेजगुणो ॥१७७॥
संजदासंजदस्स उक्कस्सगुणसेडिगुणगारादो सत्थाणसंजदस्स जहण्णगुणसे डिगुणगारो असंखेज्जगुणो। संजमासंजमपरिणामादो जेण संजमपरिणामो अणंतगुणो तेण पदेसणिज्जराए वि अणंतगुणाए होदव्वं, एदम्हादो अण्णत्थ सव्वत्थ कारणाणुरूवकज्जुवलंभादो त्ति ? ण, जोगगुणगाराणुसारिपदेसगुणगारस्स अणंतगुणत्तविरोहादो। ण च पदेसणिजराए अणंतगुणत्तब्भुवगमो जुत्तो, गुणसेडिणिज्जराए विदियसमए चेव णिव्वुइप्पसंगादो। ण च कजं कारणाणुसारी चेव इत्ति णियमो अत्थि, अंतरंगकारणावेक्खाए पवत्तस्स कजस्स बहिरंगकारणाणुसारित्तणियमाणुववत्तीदो। सम्मत्तसहायसंजम-संजमासंजमेहि जायमाणा गुणसेडिणिजरा सम्मत्तवदिरित्तसंजम-संजमासंजमेहि चेव होदि त्ति कधमुच्चदे ? ण, अप्पहाणीकयसम्मत्तभावादो। अधवा, सो संजमो जो सम्मत्ताविणाभावी ण अण्णो, तत्थ गुणसेडिणिज्जराकजाणुवलंभादो। तदो संजमगहणादेव सम्मत्तसहायसंजमसिद्धी जादा ।
उससे अधःप्रवृत्तसंयतका गुणश्रेणिगुणकार असंख्यातगुणा है ।।१७७॥
संयतासंयतके उत्कृष्ट गुणश्रेणिगुणकारकी अपेक्षा स्वस्थानसंयतका जघन्य गुणकार असंख्यातगुणा है।
शंका-यतः संयमासंयम रूप परिणामकी अपेक्षा संयमरूप परिणाम अनन्तगुणा है, अतः संयमासंयम परिणामकी अपेक्षा संयम परिणामके द्वारा होनेवाली प्रदेशनिर्जरा भी अनन्तगुणी होनी चाहिये, क्योंकि, इससे दूसरी जगह सर्वत्र कारणके अनुरूप ही कार्यकी उपलब्धि होती है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, प्रदेशनिर्जराका गुणकार योगगुणकारका अनुसरण करने वाला है, अतएव उसके अनन्तगुणे होनेमें विरोध आता है। दूसरे, प्रदेशनिर्जरामें अनन्तगुणत्व स्वीकार करना उचित नहीं है, क्योंकि, ऐसा स्वीकार करनेपर गुणश्रेणिनिर्जराके दूसरे समयमें ही मुक्तिका प्रसङ्ग आवेगा। तीसरे, कार्य कारणका अनुसरण करता ही हो, ऐसा भी कोई नियम नहीं है, क्योंकि, अन्तरंग कारणकी अपेक्षा प्रवृत्त होनेवाले कार्यके बहिरंग कारणके अनुसरण करनेका नियम नहीं बन सकता।
शंका- सम्यक्त्व सहित संयम और संयमासंयमसे होनेवाली गुणश्रेणिनिर्जरा सम्यक्त्वके विना संयम और संयमासंयमसे ही होती है, यद कैसे कहा जा सकता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, यहाँ सम्यक्त्व परिणामको प्रधानता नहीं दी गई है । अथवा, संयम वही है जो सम्यक्त्वका अविनाभावी है अन्य नहीं। क्योंकि, अन्यमें गुणश्रेणिनिर्जरा रूप कार्य नहीं उपलब्ध होता। इसलिए संयमके ग्रहण करनेसे ही सम्यक्त्व सहित संयमकी सिद्धि हो जाती है।
छ. १२-११.
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