Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४६] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४,२, ७, ६८. कम्माणि वि सुहाणि । सादावेदणीयं पुण अइसुहमुप्पादेदि ति सुहतमं । तदो तमणंतगुणमिदि भणिदं ।
देवगदी' अणंतगुणहीणा ॥ ६८ ॥
अपुव्वखवगेण चरिमसमयसुहमसांपराइयविसीहीदो अणंतगुणहीणविसोहिणा सगद्धासत्तभागेसु छट्ठभागचरिमसमयट्ठिदेण बद्धत्तादो ।
कम्मइयसरीरमणंतगुणहीणं ॥६६॥
दोण्णं पि समाणपरिणामेहि बद्धाण कधं विसरिसत्तं जुज्जदे ? ण, जीवविवागिपोग्गलविवागीणं च अणुभागाणं सरिसत्ताणुववत्तीदो। कम्मइयसरीरं पोग्गलविवागी, तप्फलस्स अवियस्स उवलंभादो । देवगदी' पुण जीवविवागी, तप्फलेण जीवे अणिमादिगुणदंसणादो । तदो जीवविवागिदेवगदिअणुभागादो बहिरंगपोग्गलविवागिकम्मइयसरीराणुभागो अणंतगुणहीणो त्ति सिद्धं । अंतरंग-बहिरंगाणं ण समाणत्तं, लोगे तहाणुवलंभादो।
तेयासरीरमणंतगुणहीणं ॥ ७० ॥ हैं। परन्तु सातावेदनीय यतः अतिशय सुखको उत्पन्न कराता है अतएव वह शुभतम है। इसी कारण वह उन दोनोंकी अपेक्षा अनन्तगुणा है यह कहा गया है ।
उनसे देवगति अनन्तगुणी हीन है ॥ ६८॥
कारण कि अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसम्परायिककी विशुद्धिकी अपेक्षा अनन्तगुणी हीन विशुद्धिवाले अपूर्वकरण क्षपकके द्वारा अपने कालके सात भागोंमेंसे छठे भागके अन्तिम समयमें उसका बन्ध होता है।
उससे कार्मण शरीर अनन्तगुणा हीन है ॥ ६६ ॥
शंका-जब कि ये दोनों कर्म समान परिणामों के द्वारा बांधे जाते हैं तब उनमें विसदृशता कैसे उचित है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, जीवविपाकी और पुद्गलविपाकी प्रकृतियोंके अनुभागों में समानता सम्भव नहीं है। कार्मण शरीर पुद्गलविपाकी है, क्योंकि, उसका फल पुद्गलसे अभिन्न उपलब्ध है
है। परन्तु देवगति जीवविपाकी है, क्योंकि, उसके फलसे जीवमें अणिमा, महिमा आदि गुण देखे जाते हैं। इसीलिये जीवविपाकी देवगति के अनुभागकी अपेक्षा बहिरंग पुद्गलविपाकी कार्मण शरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है, यह सिद्ध होता है। यदि कहा जाय कि अन्तरंग और बहिरंगकी समानता है सो भी बात नहीं है, क्योंकि लोकमें वैसा उपलब्ध नही होता।
उससे तैजस शरीर अनन्तगुणा हीन है ॥ ७० ॥
१ प्रतिषु देवगदी णं अणंत-इति पाठः । २ प्रतिषु देवगदीए पुण इति पाठः ।
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