Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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में प्रवेश की स्वीकृति है। यदि कानून के विरूद्ध कुछ है, तो धरपकड़ होती है, दण्ड होता है, वैसे ही यदि मोक्षमार्ग के यात्री के समीप मिथ्याभिनिवेश रूपी शस्त्र है, तीव्र कषायों की संहारक अग्नि है, मायारूपी शल्य है, निर्दयता की वृत्ति है और संसार के प्रति तीव्र आसक्ति आदि अवैध सामग्री है, तो मोक्षमार्ग की यात्रा में प्रवेश सम्भव नहीं है। ऐसा व्यक्ति संसार में ही परिभ्रमण करता रहेगा, अतः सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए जिनप्रणीत धर्मानुसार आचरण करना होगा, साथ ही मिथ्यात्व दलिकों का उपशम अथवा क्षय करना होगा, ताकि उनका उदय या वेदन ना रहे। सम्यग्दर्शन प्रकट होने के दो हेतु हैं- (1) निसर्ग (2) अधिगम- "तन्निसर्गादधिगमाद्वा। (1) निसर्ग-सम्यक्त्व – जो स्वतः उत्पन्न होता है। (2) अधिगम-सम्यक्त्व – जो बाह्य निमित्तों (प्रवचन, परम्परा, दर्शनादि) से होता है।
सम्यग्दर्शन अन्तर का अध्यवसाय (परिणाम) है, फिर भी उसके लक्षणों से प्रत्यक्ष भी देखा जा सकता है, जैसे- पर्वत पर धुंए को देखकर अग्नि का अनुमान होता है।सम्यक्त्व की पहचान भी उसके निम्नलिखित लक्षण द्वारा होती है
_ 'उवसम संवेगो चि अनिव्वेओ तहय होई अणुकंपा।
अत्थिक्कंचिय पंच य हवंति सम्मत लिंगाइं ।। 1. उपशम – अनन्तानुबन्धी क्रोधादि का उपशमन तथा मित्थाभिनेवेश (हठाग्रह) आदि का न होना। 2. संवेग - मोक्ष की तीव्रतम अभिलाषा का होना तथा सांसारिक-राज्ससत्ता, सम्पत्ति, विषयसुखादि सभी अनित्य हैं। इनके परिणाम अतिशय दुःखद हैं। मात्र मुक्तावस्था ही अनन्त सुखमय है, ऐसे विचारों का होना ही संवेग है। 3. निर्वेद – पापभीरूता तथा संसार के भोगादि विषयों के प्रति आसक्ति का अभाव ही
निर्वेद है।
1 तत्वार्थसूत्र - आचार्य उमास्वाति - 1/3 जिनकुशलसूरि विरचित श्री चैत्यवन्दन कुलकवृत्ति अनु. प्र. सज्जन श्री पृ. 26
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