Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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4. स्वादिम - दातून, पान का पत्ता, सुपारी, इलायची, लवंग, कर्पूर आदि सुगन्धित द्रव्यों के मिश्रणरूप ताम्बूल, तुलसी, जीरा, हल्दी, माक्षिक, पीपल, सोंठ, हरड़ आदि अनेक प्रकार के स्वादिम हैं।
___ इस प्रकार अशनादि चार प्रकार के आहरों के संक्षेप में ये भेद दिखलाए गए हैं। इसी के अनुसार शेष वस्तुओं में से कौन वस्तु किस प्रकार के आहार के अन्तर्गत् आती है- यह जान लेना चाहिए।
यहाँ प्रश्न उत्पन्न हुआ कि क्या साधु भी त्रिविधाहार का प्रत्याख्यान ले सकते हैं ?
___ प्रस्तुत प्रश्न का समाधान आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की बत्तीसवीं गाथा में दिया है
जिनेश्वरों ने आहार-प्रत्याख्यान का त्रिविध आहार आदि के भेद से वर्णन किया है। ऐसा नहीं है कि आहार प्रत्याख्यान का तात्पर्य चतुर्विध आहार ही हो, अपितु त्रिविध आहार आदि भी हो सकता है, क्योंकि उसमें पानी के छ: आगारों का उल्लेख किया गया है। यही कारण है कि अशन-पानादि आहार के चार भेदों में से किसी का भी प्रत्याख्यान अविरोधपूर्वक किया जा सकता है। मुनियों के इस अभिग्रह में कि मैं अमूक प्रकार का अशन या पान ही लूंगा- इसमें बुद्धिजीवियों का कोई विरोध नहीं दिखता है। यह विषय सूक्ष्म होने के कारण विवेकीजन उसे अच्छी तरह समझ सकते हैं।
___ त्रिविधाहार का समर्थन किया गया कि साधु त्रिविधाहार का प्रत्याख्यान ले सकता है, परन्तु अन्य मत वाले इस पर पुनः प्रश्न उठाते हैं कि त्रिविधाहार सर्वविरति साधुओं के लिए उचित नहीं है, क्योंकि यदि त्रिविध-आहार विशेष का प्रत्याख्यान साधुओं के लिए माना जाए, तो उनकी सामायिक सर्वविरति कैसे कही जाएगी ?
सर्व आहार का प्रत्याख्यान ही तो सर्वविरति है। त्रिविधाहार में सभी आहारों का त्याग नहीं होने से वह सर्वविरति नहीं कही जा सकती।
प्रस्तुत मत को आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की तैंतीसवीं गाथा में उद्धृत किया है, अतः प्रस्तुत मत का उत्तर आचार्य हरिभद्र
पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि-5/32 - पृ. - 92
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