Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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वह थोड़ा दोषयुक्त होने पर भी निर्दोष है, क्योंकि उससे लोगों के अनेक दोष दूर हो
गए।
विशेष- भगवान् ने शिल्पकला, राजनीति आदि का उपदेश देकर लोगों को शान्तिमय जीवन जीने की कला सिखाई, जिससे जीवों में परस्पर किसी भी तरह का संघर्ष नहीं हो और सभी प्रकार के नीतिविहीन आचार बन्द हो। इस प्रकार थोड़ी सी सदोष-प्रवृत्ति करके उन्होनें महान् दोषों को दूर किया।
अप्रतिपाति सम्यग्दर्शन-युक्त और सम्यग्ज्ञान से सम्पन्न, महापुण्यवान्, सर्वहितकारी, विशुद्ध मन, वचन और काय वाले तथा महासत्व वाले श्री आदिनाथ भगवान् ने, जिससे अधिक लाभ हो, उस ज्ञान को जानकर लोगों को बतलाया और यथोचित (स्वकर्त्तव्य-पालनरूप) शिल्पादि का शिक्षण देकर प्रजा की अनेक अनर्थों से रक्षा की, ऐसे भगवान् को दोष कैसे लगेगा ?
___ भगवान् आदिनाथ के द्वारा किए गए शिल्पादि विधान में यद्यपि थोड़ी हिंसा होती है, फिर भी प्रधान रूप से वह शुभ प्रवृत्ति ही है, क्योंकि उससे अनेक दोषों का निवारण भी होता है। जिस प्रकार सर्पादि से रक्षा करने के लिए माता के द्वारा बालक को खींचना पीडायुक्त होने पर भी वहाँ माता का आशय तो शुभ ही माना गया है।
गड्ढे के ऊँचे-नीचे किनारों पर अपने प्रिय पुत्र को खेलते देखकर उसको चोट न लग जाए, इस भय से उसको लाने के लिए माता गई। इतने में उसने बालक की तरफ तेजी से आते एक सर्प को देखा। उसे देखते ही माता ने बचाने के भाव से गड्ढे में से बालक को खींच लिया। खींचने में बालक को पीड़ा तो हुई, किन्तु शुद्ध भाव होने से इस पीड़ा से अधिक अनर्थरूप बालक की मृत्यु का निवारण हो गया।
यहाँ बालक को खींचने में पीड़ा होने पर भी माता के द्वारा बालक के द्वारा खींचना उचित ही है। यदि माता नहीं खींचती, तो सर्प बालक को दंश मार देता और उस बालक की मृत्यु हो जाती, अतः मृत्युरूप भयंकर अनर्थ से बचाने के लिए खींचने रूप अल्प अनर्थ किया गया है, तो भी वह परमार्थ से अर्थरूप, अर्थात् उचित ही है।
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