Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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कृति
कुन्दकुन्दाश्रावकाचार
पंचवस्तुक
महानिशीथसू
षोडशक प्रकरण सावयधम्म दोहा
प्रतिष्ठासारोद्वार
सुबोधा-समाचारी
विवेकविलास
विधिमार्गप्रपा
समाचारी-संग्रह
समाचारी - संग्रह
आचार दिनकर
उपासकाध्ययन
अष्टादशअभिषेकबृहद्विधि
8.
कृतिकार
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कुन्दकुन्दाचार्य
भद्रसूर
आ. हरिभद्र (प्रथम)
भद्र
देवसेन / लक्ष्मीचन्द
पं. आशाधर
चन्द्रसूरि
श्री जिनदत्त सूरि
प्रभ
नरेश्वरसूरि
नरेश्वरसूरि
वर्धमानसूर
आ. ज्ञानभूषण बृहद्विधि संकलित
कृतिकाल लगभग 5 वीं शती
8 वीं शती
8 वीं शती
8 वीं शती
10 वीं शती
वि.सं. 1250
13 वीं शती
13 वीं शती
वि.सं. 1363
लगभग 14 वीं शती
14 वीं शती
जिन - बिम्ब प्रतिष्ठा विधि पंचाशक
जिनभवन का निर्माण जिन - बिम्ब की प्रतिष्ठा हेतु ही होता है। जिन - बिम्ब की प्रतिष्ठा का विधान मंगल रूप माना गया है अतः जिन-बिम्ब की प्रतिष्ठा की विधि में विधान के स्वरूप का पूरा ख्याल रखा जाता है, क्योंकि प्रतिष्ठा के सही विधि-विधान का संघ, ग्राम, नगर, देश, विश्व पर प्रभाव पड़ता है, अतः पूर्ववर्ती आचार्यों एवं ज्ञानी श्रावकों ने प्रतिष्ठा विधि-विधान पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं । प्रतिष्ठा के विधि विधानों से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का उल्लेख यहाँ पर कर रहे हैं
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वि.सं. 1463
20 वीं शती
20 वीं शती
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