Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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अनावरण होता है, सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है, यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति एवं परंपरा से सिद्धत्व की उपलब्धि होती है।
सामायिक, प्रतिक्रमण, वंदन, ध्यान प्रत्याख्यान, पूजन आदि कषायों में उपशमन करने वाले, मन को शान्त करने वाले मोक्षगति की ओर ले जाने वाले, मन को शांत करनेवाले, कृतपापों को नाश करने वाले, विचारों को विशुद्ध करने वाले, साधना के उच्च शिखर पर पहुँचाने वाले हैं। अतः हरिभद्र पंचाशकप्रकरण में इन विधि-विधानों का सम्यक् रूप से परिपालन करने का निर्देश देते हैं ।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य
अब हम जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य पर विचार करेंगे ।
जैन परम्परा के अन्तर्गत श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परपंरा में इस विधा के अनेक ग्रन्थों की रचना हुई है ।
श्वेताम्बर परंपरा के आचार्य हरिभद्रसूरि ने इस विधा के पंचवस्तुक, श्रावक - प्रज्ञप्ति (सावयपन्नति), श्रावकधर्माविधिप्रकरण, पंचाशकप्रकरण आदि ग्रन्थों की रचना की थी ।
उन्होंने पंचवस्तुक ग्रंथ में दीक्षाविधि से लेकर संखलेखना विधि तक के पाँच द्वारों का सयुक्तिक एवं सहेतुक प्रतिपादन किया है। यह ग्रन्थ संयमी - जीवन की शुद्धचर्या से सम्बन्धित है। इसमें उन्होंने पाँच प्रकार के विधानों की ही प्रमुख रूप से चर्चा की है यह कहना अनुचित और अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि आगमशास्त्रों पर व्याख्यापरक साहित्य ग्रन्थों की रचना के बाद विधि-विधानों का विस्तृत एवं प्रामाणिक उल्लेख सर्वप्रथम मेरी शोध में पंचाशकप्रकरण के रचियता आचार्य हरिभद्र के ग्रन्थों में ही देखने को मिलता है। इन ग्रन्थों में आचार्य हरिभद्र के ग्रन्थ पंचवस्तुक का स्थान प्रथम है । आचार्य हरिभद्र कृत प्रस्तुत शोध के विषयक ग्रन्थ पंचाशकप्रकरण में श्रावकधर्मपंचाशक, दीक्षापंचाशक, वंदन - पंचाशक, पूजा - पंचाशक, प्रत्याख्यान - पंचाशक, जिनबिंब प्रतिष्ठा - पंचाशक, जिन यात्राविधान पंचाशक, श्रावकप्रतिमा पंचाशक, साधु-धर्म पंचाशक-साधुसामाचारी पंचाशक, पिण्ड विशुद्धि पंचाशक, शीलांग पंचाशक,
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