Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji

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Page 673
________________ संस्कार संबंधी विधि-विधान मनुष्य मन को संस्कारित बनाने के लिये विविध संस्कार विधि पूर्वक करना आर्य व्यवहार है। संस्कार - विधि में सोलह संख्या प्रसिद्ध है । इस प्रकार सोलह संस्कारों की विधियाँ हिन्दुओं में भी प्रसिद्ध है एवं प्रचलित है । वर्धमानसूरि कृत आचारदिनकर में सोलह संस्कारों की विधियों का सुचारू रूप से वर्णन मिलता है। वैश्य वर्ण में ये विधि विधान अभी भी प्रचलित है । परन्तु जैनधर्म में ये संस्कार सम्बन्धी विधि-विधान प्रायः लुप्त से है, फिर भी कुछ संस्कार प्रचलन में है, जैसे मुण्डन संस्कार, नामकरण संस्कार, कर्णविधि संस्कार आदि संस्कार लोक व्यवहार अनुसार आज भी प्रचलित है। इसके अतिरिक्त उपधान, योगोद्वहन, पाँच–अणुव्रत, बारह व्रतारोपण, मुनि-दीक्षा आदि के संस्कार भी वर्तमान में भी प्रचलित हैं। आवश्यक क्रिया संबंधी विधि विधान सामायिक, चैत्यवन्दन, देववन्दन, प्रतिक्रमण आदि की दैनिक क्रियाएँ आवश्यक सम्बन्धी विधि विधान कहलाती है । शांतिक पौष्टिक कर्म संबंधी विधि-विधान काल के प्रभाव से अनेक प्रकार के उपद्रव होते ही रहते है, विषम परिस्थितियों का निर्माण होता ही रहता है। ऐसा परिस्थितियों से मुक्त होने के लिए अनेक प्रकार के शांति-कर्म के विधि-विधानों की आवश्यकता प्रतीत होती है। व्यक्ति इन विधि-विधानो के द्वारा शान्ति की पहल भी करता है, क्योंकि सभी चाहते हैं कि हमारे कार्य में भी विघ्न न आये और यदि आये तो विघ्न शान्त हो जाए और इच्छित फल की प्राप्ति हो आदि । इसी प्रकार शान्ति के विधि-विधान अपने-अपने ढंग से सभी धर्मों व सभी वर्णो में प्रचलित है। Jain Education International For Personal & Private Use Only 650 www.jainelibrary.org

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