Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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धार्मिक विधि-विधानों के द्वारा शरीर, मन एवं आत्मा निर्मल एवं प्रशान्त बनती
धार्मिक विधि-विधानों के द्वारा राग-द्वेष की गाँठ कमजोर होती है, वैर भाव के परिणामों का अन्त होता है मैत्री, प्रमोद, कारूण्य और माध्यस्थ भावों का आविर्भाव होता है। प्रतिक्रमण के विधि-विधानों के माध्यम से आत्मा माया, छल आदि दुर्गुणों से रहित होती है। साथ ही विभाव से स्वभाव में आती है।
प्रतिक्रमण के विधान मे विविध आसनों का व्यावहारिक प्रयोग शारीरिक रोगों को दूर करता है।
प्रतिक्रमण के विधि-विधान पूर्वकृत पापों की आलोचना और पुनः पापों को नहीं करने की प्रेरणा देते है।
विधि-विधानों के प्रकार
___ जैन दर्शन में विधि-विधानों के अनेक प्रकार है पर इन विधि-विधानों के विभाजन की अपेक्षा से मुख्यतः छ: प्रकार से विधि विधान परिलक्षित होते है।
1. संस्कार संबंधी विधि-विधान
2. आवश्यकक्रिया सम्बन्धी विधि-विधान
3. शांतिक एवं पौष्टिक कर्म संबंधी विधि-विधान
4. प्रतिष्ठा संबंधी विधि-विधान 5. मांत्रिक साधना संबंधी विधि-विधान 6. योगोद्वहनादि संबंधी विधि-विधान
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