Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji

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Page 674
________________ __जैन धर्म में विघ्न निवारण हेतु शान्तिक-पौष्टिककर्म के लिये शान्तिस्नात्रपूजा, सिद्धचक्र महापूजा, स्नात्रपूजा आदि के विधि-विधानों का प्रचलन है। प्रतिष्ठा संबंधी विधि-विधान __प्रतिमा निर्माण से लेकर प्रतिमा-प्रतिष्ठा (स्थापना) तक में भी विविध विधि-विधान किये जाते है। जो प्रतिष्ठा विधि सम्बन्धी पुस्तकों में संकलित है। इन विधानों के अन्तर्गत मुख्य रूप से भूमि पूजन खनन मुहुर्त, शिलारोपण, अंजनश्लाका, प्रतिष्ठा, ध्वजारोहण, द्धारोढ्घाटन आदि विधि-विधान है। मांत्रिक विधिविधान मंत्रो सम्बन्धी विधि-विधानों का क्षेत्र व्यापक हैं। व्यक्ति से लेकर विश्व को वश में करने की साधना इन विधि-विधानों के अन्तर्गत आती है। इन विधि-विधानों के द्वारा व्यक्ति सफल भी हो सकता है व असफल भी। सफल होने का रहस्य है दिशा, समय, स्थान, आसन, तप, व्रत आदि नियमों का यथावत् पालन करते हुए विधि को सम्पन्न करना। योगोदवहन विधि-विधान दीक्षा, व्रतग्रहण, उपस्थापना, कालग्रहण, आगमपठन, पदस्थापना आदि के अनुष्ठान योगोद्वहन के विधि के अन्तर्गत आते हैं। इन विधि-विधानों को करने के लिये अनेक पुस्तकें या ग्रन्थ प्रकाशित है दीक्षा, उपस्थापना, नन्दीरचना आदि के विधान इस प्रकार के विधान है जो आत्मशुद्धि के साथ-साथ जिनशासन की प्रभावना में चार चाँद लगाते है। आचार्य, उपाध्याय, वाचनाचार्य, प्रवर्तिनी, महत्तरा आदि पद स्थापना के विधि-विधान संघीय अनुशासन, आचार सम्बन्धी संविधान के पालन एवं संयमनिष्ठता आदि में उपयोगी है। कुंभस्थापना, दीपकस्थापना आदि के विधि-विधान शुभ अनुष्ठानों को मंगलकारी बनाते है। उपधान, योगोवहन आदि ऐसे विधि-विधान हैं, जिनसे ज्ञान के आवरण का 651 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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