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आलोचना-पंचाशक, प्रायश्चित-पंचाशक, दसकल्प पंचाशक, भिक्षुप्रतिमा पंचाशक, तप पंचाशक आदि में अपने अपने विषयों के विधि-विधानों का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इस पर खतरगच्छाचार्य नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि का विवरण भी उपलब्ध है, जो इन विधि-विधानों की विस्तृत विवेचना करता है। विधि-विधानों पर अनेक जैनाचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों की रचनाएँ निर्मित की हैं। निर्वाणकलिका (प्रतिष्ठा-विधान) नामक एक अन्य ग्रन्थ भी प्राप्त होता है। इनके अतिरिक्त धनेश्वरसूरि के शिष्य चन्द्रसूरि द्वारा रचित अनुष्ठानविधि नामक एक ग्रन्थ है जिसमें सम्यकत्व-आरोपणविधि, व्रतारोपणविधि, श्रावकप्रतिमावहन-विधि, उपधान विधि, मालारोपण विधि, तप विधि, आराधना विधि, प्रव्रज्या विधि, उपस्थापन विधि, केशलोच विधि, पदप्रदान विधि, ध्वजारोहण विधि, कलशारोहण विधि आदि 20 प्रकार के विधि विधानों का उल्लेख किया गया है।
तिलकाचार्य द्वारा रचित सामाचारी नामक ग्रन्थ भी इसी प्रकार के विधि विधानों का निर्देशन करता है।
जिनप्रभसूरि द्वारा रचित विधिमार्गप्रपा में भी इसी प्रकार के विधि विधानों का उल्लेख मिलता है।
वर्धमानसूरि कृत आचारदिनकर में 40 प्रकार के विधि-विधानों का उल्लेख प्राप्त होता है।
इसी प्रकार जैन विधि-विधानों से सम्बन्धित जिनवल्लभगणि कृत पिण्डविशुद्धि प्रकरण ग्रन्थ भी समुपलब्ध है। इस प्रकरण में विशेष रूप से श्रमण वर्ग की आहार चर्चा पर विवेचन है। इस प्रकार जैन धर्म में विधि-विधानों के अनेकानेक ग्रन्थों की सूचि उपलब्ध है। इसका विस्तृत विवेचन अलग से अध्याय 6 में किया गया है।
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