Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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आचारांगसूत्र
सूत्रकृतांगसूत्र
दशवैकालिकसूत्र
उत्तराध्ययनसूत्र
प्रश्नव्याकरणसूत्र
मूलाचार
बृहत्कल्पभाष्य (प्रा)
पंचवस्तुक (प्रा)
व्यवहारसूत्र
आवश्यकसूत्र
निशीथसूत्र
व्यवहारनिर्युक्ति
ओघनियुक्ति
मूलायार (मूलाचार)
भगवती - आराहणा (आराधना )
बृहदकल्पभाष्य
व्यवहारभाष्य
जीतकल्पभाष्य
महानिशीथसूत्र
उपदेष्टा भगवान महावीर
उपदेष्टा भगवान महावीर
आ. शय्यंभव
संकलन
15. आलोचना विधि पंचाशक
जैन परम्परा में किसी भी प्रकार के व्रतों का अतिक्रमण हो जाये तो उसके लिये आलोचना का विधान है। आलोचना विधान से सम्बन्धित साहित्य विपुल मात्रा में उपलब्ध है। जिसमें से कुछ प्रमुख ग्रन्थों की सूची निम्न प्रकार से है
कृति
कृतिकार
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वर्तमानसंस्करण–अज्ञातकृत
ट्टराचार्य
संघदासगण
आ. हरिभद्र
आर्यभद्र
आगम
आर्य भद्रबाहु
आर्य भद्र
आर्य भद्र
वट्टकेराचार्य
पाणीतलमोजी शिवार्य
संघदासगणि
संघदासगण
जिनभद्रगणि
उद्धारक आ. हरिभद्र ( प्र . )
ई.पू. 6 टी शती
ई.पू. 6 टी शती
ई.पू. 4 थी त
ई.पू. 3 री शती
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6 टी शती
6 टी शती
8 वीं शती
कृतिकाल
लगभग 5-6 टी शताब्दी
ई.पू. 3 री शती
3 री शती
2 री शती
लगभग 6 टी शती 6 टी शती
7वीं शती
6 टी शती
लगभग 6 टी शती 8 वीं शती
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