Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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अध्याय-7 उपसंहार
जैन साहित्य में आचार्य हरिभद्र की रचनायें एक प्रमुख स्थान रखती हैं। परम्परा से यह कहा जाता है कि उन्होंने 1444 ग्रन्थों की रचना की थी, किन्तु वर्तमान में उनके नाम से लगभग 80 ग्रथ उपलब्ध है। इन 80 ग्रन्थों में भी कुछ ग्रन्थ ऐसे हैं जो याकिनीसुनहरिभद्र की कृति है या किसी अन्य हरिभद्र की कृति है ? इस सम्बन्ध में विवाद है। फिर भी अष्टक, षोडशक, विंशिका और पंचाशक ऐसे ग्रन्थ हैं जिनके कर्तृत्व को लेकर कोई विवाद नहीं है, वे याकिनीसुनुहरिभद्र की ही कृतियाँ मानी गई हैं, क्योंकि इन ग्रन्थों में सामान्यतया उनका उपनाम 'भवविरह' उपलब्ध होता है। ज्ञातव्य है कि याकिनीसुनुहरिभद्र अपनी कृतियों के अन्त में प्रायः ‘भवविरह' शब्द का प्रयोग करते रहे हैं
और इसी कारण वे 'भवविरहसूरि' के नाम से भी जाने जाते है। आचार्य हरिभद्र का कर्तृत्व व्यापक और बहुआयामी है और विशेष रूप से योगसाधना और आचार के परिप्रेक्ष्य में ही लिखा गया है, वैसे आचार्य हरिभद्र की कृतियों में आगमिक व्याख्याओं एवं दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थों को छोड़ दें, तो उनके अधिकांश ग्रन्थ आचार-प्रधान और उपदेश–प्रधान हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने योग-साधना की दृष्टि से भी स्वतंत्र ग्रन्थ लिखे हैं। उनके योग सम्बन्धी ग्रन्थों में निम्न चार ग्रन्थ प्रमुख हैं :- 1. योगविंशिका, 2. योगशतक, 3. योगबिन्दु और 4. योगदृष्टिसमुच्चय
हरिभद्र के दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थों में षड्दर्शनसमुच्चय, शास्त्रवार्तासमुच्चय, अनेकांतजयपताका, अनेकांतवादप्रवेश, न्यायाप्रवेशटीका आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं, किन्तु इतना स्पष्ट है कि उनके ग्रन्थों में उपदेश प्रधान और आचार प्रधान ग्रन्थ अधिक प्रमुख रहे हैं।
____ आचार्य हरिभद्र के योग एवं दर्शन सम्बन्धी साहित्य पर तो कुछ शोधकार्य हुए हैं, किन्तु उनके उपदेश प्रधान और आचार प्रधान ग्रन्थों पर शोध कार्य अल्प ही हुआ है। जहाँ तक मेरी जानकारी है, आचार्य हरिभद्र के पंचवस्तु नामक ग्रन्थ को छोड़कर उनके आचार प्रधान ग्रन्थों पर कोई शोध कार्य नहीं हुआ।
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