Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji

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Page 655
________________ प्रायश्चित आ. विद्यानन्दी 9 वीं शती छेदशास्त्र अज्ञातकृत लगभग 10 वीं शती प्रायश्चित-चूलिका गुरूदास 12 वीं शती व्यवहार-विवरण अज्ञातकृत 12 वीं शती प्रायश्चित-समाचारी तिलकाचार्य 13 वीं शती छेदपिण्डशास्त्र इन्द्रनन्दि योगीन्द्र 14 वीं शती जइ-जीय-कप्पो (यतिजीतकल्प) सोमप्रभसूरि 14 वीं शती सढ़जीयकप्पो (श्राद्धजीतकल्प) धर्मघोषसूरि वि.सं. 1357 विवेकविलास श्री जिनदत्तसूरि 13 वीं शती रत्नमालागत श्रावकाचार आ. शिवकोटि 5 वीं शती (यह काल्पनिक मान्यता है।) प्रायश्चित निरूपण मुनि सोमसेन वि.सं. 1660 प्रायश्चित आ. अकलंक (द्वितीय) वि.सं. 1678 विधिमार्गप्रपा जिनप्रभसूरि वि.सं. 1363 आचार दिनकर वर्धमानसूरि वि.सं. 1463 धर्मसंग्रह मानविजयगणि वि.सं. 1731 17. स्थित-अस्थित कल्प-विधि पंचाशक - जैन परम्परा में दस कल्प माने गये हैं, उनमें कुछ स्थित (सार्वकालिक) और कुछ अस्थित कल्प हैं। स्थित-अस्थित कल्प विधान के द्वारा आचार संहिता का विशद वर्णन जैन आचार्यों द्वारा किया गया है। स्थित-अस्थित कल्प की चर्चा कई ग्रन्थों में मिलती है, उनमें से कुछ प्रमुख ग्रन्थों की सूची निम्न प्रकार से है - कृति कृतिकार कृतिकाल दशवैकालिक सूत्र आ. शय्यंभव ई.पू. चौथी शती बृहत्कल्पसूत्र आर्य भद्रबाहु ई.पू. 3 री शती व्यवहारसूत्र आर्य भद्रबाहु ई.पू. 3 री शती 633 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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