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उपा. क्षमाकल्याण
प्रायः 16 वीं शती
साधुविधिप्रकाश प्रकरण समाचारीशतकम् धर्मसंग्रह
17 वीं शती
समयसुन्दरगणि मानविजयगणि देवेन्द्रसूरि
वि.सं. 1731
प्रत्याख्यान भाष्य
प्रायः 14 वीं शती
स्तवनविधिपंचाशक - जैन धर्म में स्तवन की महिमा अपूर्व है। इसे द्वितीय आवश्यक (कर्त्तव्य) माना गया है। द्रव्य स्तवन एवं भाव स्तवन पर आधारित कई ग्रन्थ उपलब्ध हैं। स्तवन पर लिखित ग्रन्थों की प्रकाशित सूची का विवरण यहाँ पर दे रहे हैंकृति कृतिकार
कृतिकाल श्रावकधर्मविधिप्रकरण
आ. हरिभद्र
8 वीं शती वीरस्तव प्रर्कीणक
वीरभद्र (द्वितीय) 10 वीं शती चैत्यवन्दनभाष्य
देवेन्द्रसूरि
14 वीं शती श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति देवेन्द्रसूरि
14 वीं शती विधिमार्गप्रपा
जिनप्रभसूरि
वि.स. 1363 पंचविंशतिश्रावकाचार मुनि पद्मनन्दि
14वीं शती आचारदिनकर
वर्धमानसूरि
वि.सं. 1463 पंचवस्तुक
हरिभद्रसूरि
8 वीं शती ज्ञानानन्दश्रावकाचार
पं. रायमल
17 वीं शती श्राद्धप्रकरण विधि
रत्नशेखरसूरि
16 वीं शती श्रमणआवश्यकसूत्र
संकलित
20 वीं शती
जिनभवन निर्माण विधि पंचाशक - जिनभवन के निर्माण कार्य का अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिनभवन निर्माण पूर्णतः वास्तु के अनुरूप होना चाहिए। इस हेतु अनेकों लेखकों ने इस पर अपनी कलम चलायी, जिसकी सूची इस प्रकार है -
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