Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार प्रत्यवेक्षण एवं प्रमार्जन किए बिना ही बिछौना
करना या आसन बिछाना प्रथम अतिचार है ।
2. अप्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित - शय्या - संस्तारक
पंचाशक - प्रकरण के अनुसार चखले आदि से साफ नहीं किया हुआ या अच्छी तरह साफ नहीं किया हुआ बिस्तर लगाना, उस पर सोना इत्यादि अप्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित - शय्या - संस्तारक - अतिचार है ।
उपासकदशांगटीका के अनुसार कोमल वस्त्र से प्रमार्जित न किए हुए, बिना पूंजे अथवा लापरवाही से पूंजे स्थान एवं बिछौने का उपयोग करना अप्रमार्जित- दुष्प्रमार्जित- शय्या - संस्तारक - अतिचार है, परन्तु दिगम्बर ग्रन्थों में चारित्रसार, सर्वार्थसिद्धि आदि मे इस अतिचार का अर्थ बिना शोधन किए और बिना देखे पूजा के उपकरणों ( जिनमें गंध, माला, धूप, वस्त्रादि हैं) से ग्रहण किया गया है । तत्त्वार्थ- सूत्र के अनुसार इसी प्रकार प्रत्यवेक्षण और प्रमार्जन किए बिना ही लकड़ी, चौकी आदि वस्तुओं को लेना व रखना अतिचार है । प्रस्तुत अतिचार पंचाशक - प्रकरण के विपरीत है।' 3. अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित - उच्चार - प्रश्रवणभूमिपंचाशक - प्रकरण के अनुसार दीर्घशंका और लघुशंका करने की भूमि को देखे बिना या अच्छी तरह देखे बिना मलमूत्र विसर्जन करना अप्रतिलेखित - दुष्प्रतिलेखित - उच्चार - प्रश्रवणभूमि – अतिचार है । '
उपासकदशांगटीका के अनुसार भी बिना देखे और बिना शोधन किए भूमि पर मल-मूत्रादि छोड़ने को अप्रतिलेखित - दुष्प्रतिलेखित - उच्चार - प्रश्रवणभूमि – अतिचार
कहते हैं। 2
4 पंचा क प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/30 - पृ. सं. 13
5 उपासकदांग टीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/55 - पृ. सं. - 53
' चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. सं. - 12
7 तत्वार्थ सूत्र - आ. उमास्वाति - 7 / 29 - पृ. सं. - 189
1 पंचाशक - प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/30 - पृ. 13 2 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/55 - पृ. - 53 3 चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. - 12
4 तत्त्वार्थ सूत्र - आ. उमास्वाति - 7/29- पृ. - 189
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