Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक - प्रकरण के उपासक - प्रतिमाविधि के अन्तर्गत्
कायोत्सर्ग प्रतिमाविधि का विश्लेषण किया है
सम्म्मणुव्वयगुणवयसिक्खावयवं थिरो य णाणी य। अट्ठमि चउद्दसीसुं पडिमं ठाएगराईयं । । असिणाणवियऽमोई मउलियडो दिवस बंभयारी य । रतिं परिमाणकडो पडिमावज्जेसु दियहेसु ।।
कायोत्सर्ग प्रतिमा में स्थित होने वाला श्रावक सम्यक्त्व सहित अणुव्रतों, गुणव्रतों एवं शिक्षाव्रतों का पालन करने वाला एवं पूर्वोक्त चार प्रतिमाओं का धारक, अचल सत्वधारी और प्रतिमाविधि का ज्ञाता होता है। ऐसा श्रावक अष्टमी और चतुर्दशी आदि पर्वतिथियों के दिन सम्पूर्ण रात्रि कायोत्सर्ग - प्रतिमा में स्थित रहता है तथा कायोत्सर्ग-प्रति प्रतिमा वर्जित दिनों में स्नान नहीं करता है, रात्रि भोजन नहीं करता है, धोती की गांठ नहीं बांधता है, दिन में सम्पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करता है और रात्रि में स्त्री - भोग का परिमाण करता है। इसी को कायोत्सर्ग प्रतिमा कहा गया है। 1.2
उपासकदशांगसूत्रटीका में सम्यक्त्व सहित अणुव्रतों और गुणव्रतों का धारक श्रावक अष्टमी तथा चतुर्दशी के दिन रातभर कायोत्सर्ग करता है, रात्रिभोजन का त्याग करता है, दिन में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, सांसारिक प्रवृत्तियों का त्याग करता है, इसी को कायोत्सर्ग-प्रतिमा कहा है । दशाश्रुतस्कंध में उपर्युक्त चारों प्रतिमाओं के साथ इसी प्रतिमा में जो प्रतिमाधारी स्नान नहीं करता, रात्रिभोजन नहीं करता, धोती के लांग नहीं लगाता, दिन में ब्रह्मचर्य और रात्रि में मैथुन - सेवन का परिमाण करता है एवं इसे एक दिन से पांच मास तक पालन करता है, उसे नियम प्रतिमाधारी - श्रावक कहा है । 1 दिगम्बर-परम्परा में रात्रिभुक्तित्याग या दिवामैथुनत्याग को स्वतन्त्र प्रतिमा गिना है, परन्तु श्वेताम्बर - साहित्य में इसे कायोत्सर्ग या निगम - प्रतिमा में समाविष्ट कर
1-2 पंचा क प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 10/17+18 - पृ. सं. - 169
3 उपासकदांग सूत्रटीका- आ. अभयदेवसूरि - पृ. सं. - 55
4 द श्रुतस्कंध टीका - आ. अभयदेवसूरि - 6 /20
5 (क) रत्नकरण्डक - श्रावकाचार स्वामी समन्तभद्र - 7 / 142 - पृ. - 471 (ख) कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा - स्वामी कार्त्तिकेय – 81
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