________________
बाह्यतप के छः प्रकार
बाह्य-तप के भेद - प्रभेद की चर्चा करते हुए कहते है
Jain Education International
—
आचार्य हरिभद्र तपोविधि - पंचाशक की दूसरी गाथा में
बाह्य-तप के छः भेद हैं- 1. अनशन 2. ऊनोदरी 3. वृत्तिसंक्षेप,
—
रसत्याग 5. कायक्लेश और 6. संलीनता ।
1. अनशन -
सर्वथा भोजन का त्याग करना अनशन है। भोजन की इच्छा पांचों इन्द्रियों के प्रभाव से होती है, जैसे- पदार्थ के विषय में सुनकर देखकर सूंघकर, चखकर या हाथों से स्पर्श कर, परन्तु जब इस तप में मन को जोड़ा जाता है, तो ही यह तप, तप के रूप में सार्थक होता है। उपवास कर लिया और भोजन के विषय में सुना कि आज भोजन बहुत स्वादिष्ट बना है, यह सुनकर खाने की इच्छा हुई । अथक आंखों से देखा कि आज घर में मिठाई कितनी बढ़िया बनी है, फलतः मन में खाने की इच्छा जम गई। भोजन बन रहा है और सुगंध अच्छी आई, सोचा, आज तो बादाम का हलवा बन रहा है, अतः खाने की इच्छा हो गई। भोजन की कल्पना की, मुंह में पानी आ गया और खाने की इच्छा हो गई। खाने के किसी पदार्थ को स्पर्श किया, अथवा कोई प्रिय खाद्यवस्तु हाथ लग गई और उसे खाने की इच्छा हो गई। इस प्रकार, पांचों इन्द्रियों पर नियन्त्रण किए बिना तप असम्भव है । मन के नियन्त्रण के साथ इन्द्रियों का नियन्त्रण अपेक्षित है, क्योंकि अनशन का उद्देश्य मात्र काया को कष्ट देने का ही नहीं होता है, अपितु आध्यात्मिक - गुणों का विकास करना होता है ।
आभ्यंतर - तप में सारे तप मन के ऊपर निर्भर हैं। मन से जुड़े बिना एक भी तप निर्जरा का हेतु नहीं बनता है । बाह्य - तप, निर्जरा एवं बंध - दोनों का हेतु है, परन्तु आभ्यन्तर-तप तो निर्जरा का ही हेतु है ।
अनशन के भेद - यावत्कथित
अनशन के मुख्यतः दो भेद हैं- 1. यावत्कथित और 2. इत्वर । जीवन - पर्यन्त आहार का त्याग करना । यावत्कथित के भी तीन भेद किए गए हैं- (क) पादोपगमन (ख) इंगितमरण (ग) भक्त - प्रत्याख्यान । (क) पादोपगमन हलन चलन आदि का त्याग करना पादोपगमन है।
शरीर - सुश्रुषा का तथा चारों आहार का
1 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 19/2 - पृ. - 333
4.
For Personal & Private Use Only
578
www.jainelibrary.org