Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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तप से समाधिमरण की प्राप्ति होती है। तप से असाध्य रोगों का शमन होता है। तप से आर्त्तध्यान आदि से मुक्ति मिलती है। तप से क्रोध का ताप शान्त होता है। तप से सहन शक्ति का विकास होता है। तप से पुण्य का पोषण होता है। तप से पाप का शोषण होता है। तप से अणाहारी-पद की प्राप्ति होती है। तप से आहार की मूर्छा समाप्त होती है। तप से रसनेन्द्रिय पर विजय प्राप्त होती है। तप से त्याग के सिद्धान्त का रोम-रोम में रमण होता है। तप से आपत्तियों का विनाश होता है। तप से आत्मा वैराग्य के रंग में रंग जाती है। तप से वांछित फल की प्राप्ति होती है। तप से इन्द्रियों के विषय-भोग जड़मूल से नष्ट हो जाते हैं।
तप से इहलौकिक और पारलौकिक सुख-संपदा की प्राप्ति होती है। तप से शरीर और आत्मा का भेद-ज्ञान होता है। तप से अनादिकाल के लगे क्लिष्ट कर्म चकनाचूर हो जाते
तप से भोगों की तृष्णा समाप्त होती है। तप से इच्छा-ज्वाला शान्त होती है। तप से मनरूपी मर्कट वश में होता है। तप से इन्द्रियोंरूपी सर्पिणी वश में होती है। तप से नरक-गति का निवारण होता है।
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