Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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परोसा गया। उस व्यक्ति को पत्थर रखने का कारण समझ में आ गया। उसने पेट भरकर सर्व पदार्थ खाए और प्रसन्नचित्त होकर घर लौट गया। इधर, बाहर सेठ की निन्दा हो ही रही थी, तो लोगों ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम वहीं बैठे रहे, तो और अधिक अपमान मिला होगा ?
उस व्यक्ति ने कहा- "सुनो ! मैं तो बादाम, पिस्ता, अखरोट आदि खाकर आया हूँ। पत्थर पहले इसलिए रखा गया कि बादाम आदि को तोड़कर खाना है। यह सुनकर सभी पश्चाताप करने लगे कि हमने मूर्खता की, थोड़ी देर और बैठे रहे होते, तो हम भी माल खाकर आते। ठीक इसी प्रकार
___ जैनधर्म की तपस्या प्रारम्भ में कठोर और कष्टप्रद लगती है, पर अन्त उसका आनन्द है। ऐसे आनन्द के स्वरूप-रूप तप का आचरण सभी को करना चाहिए, क्योंकि वह देहासक्ति तोड़ने का उपाय है।
--अध्याय पंचम की समाप्ति----
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