Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji

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Page 618
________________ साधु-साध्वी को करना चाहिए एवं श्रावक-श्राविकाओं को भी यथाशक्ति ये सभी तप करना चाहिए । इस तप को शक्ति - अनुसार उपवास, आयम्बिल, नींवी, अथवा एकासन करना चाहिए। नन्दीश्वर-तपनन्दीश्वर द्वीप शाश्वत् द्वीप है। यहाँ पर शाश्वत चैत्यालय है । परमात्मा के कल्याणक - प्रसंगों पर तथा पर्युषण पर्व पर यहाँ अट्ठाई जिन - महोत्सव देवगण हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस तप को करने का उद्देश्य यह है कि तप करने वाले को भी नन्दीश्वर - द्वीप की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हो। इस तप को कार्त्तिक कृष्ण, अमावस्या, अर्थात् महावीर - निर्वाण के दिन प्रारम्भ करना चाहिए। यह तप सात वर्ष अथवा एक वर्ष में भी पूर्ण होता है । यह तप नन्दीश्वर - द्वीप के पट्ट के सामने करना चाहिए, नन्दीश्वर–जिनचैत्य की पूजा करना चाहिए । इस प्रकार, प्रतिमाह अमावस्या को उपवास करते हुए तप पूर्ण करना चाहिए । पुण्डरीक-तप ऋषभदेव के प्रथम गणधर पुण्डरीक स्वामी के नाम से यह तप है । यह तप एक वर्ष, अथवा सात वर्ष में पूर्ण करने का नियम है। यह तप चैत्र पूर्णिमा के दिन ही करने का विधान है । इस दिन पुण्डरीक स्वामी की प्रतिमा का ही पूजन करते हुए इस तप की आराधना करना चाहिए । अक्षयनिधि-तपअक्षय अर्थात् शाश्वत और निधि अर्थात् खजाना। इस प्रकार इस तप का उद्देश्य शाश्वज खजाना प्राप्त करना है। यह तप भाद्रपद कृष्ण-चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तक एकासने के साथ पूर्ण किया जाता है। इस तप की विधि में प्रतिदिन परमात्मा की पूजा व अंजलिभर अक्षत आदि से कलश भरना चाहिए। यह तप चार वर्ष में पूर्ण होता है । सर्वसौख्यसम्पत्ति-तप सर्व सुखों की सम्पत्ति का प्रदाता होने के कारण इस तप का नाम सर्वसौख्य-सम्पत्ति - तप है। इस तप की विधि दुष्कर है। यह तप शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ करना चाहिए । प्रतिपदा को एक उपवास, द्वितीया को दो उपवास, तृतीया को तीन उपवास - इस प्रकार, क्रमशः बढ़ते-बढ़ते पूर्णिमा को पन्द्रह उपवास Jain Education International For Personal & Private Use Only 597 www.jainelibrary.org

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