Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत् तपोविधि-पंचाशक की तेइसवीं से लेकर पच्चीसवीं तक की गाथाओं में चर्चा की है
लोक-परम्परा के अनुसार, रोहिणी आदि देवताओं को उद्दिष्ट करके किए जाने वाले अनेक प्रकार के तप हैं। ये तप सांसारिक-सुखों के उपलब्धि-रूप होने के कारण पुण्यरूप होते हैं, फिर भी ये मोक्षमार्ग को प्रशस्त अवश्य करते हैं, परन्तु मोक्षफलदायी नहीं होते हैं। नौ देवता इस प्रकार हैं- रोहिणी, अम्बा, मन्दपुण्यिका, सर्वसम्पदा, सर्वसौख्या, श्रुतदेवता, शान्तिदेवता, काली, सिद्धायिका।
इन नौ देवताओं की आराधना के लिए विधि पृथक्-पृथक् हैं। इन नौ देवताओं की आराधना के लिए जो विविध तप विविध देशों में प्रख्यात हैं, वे सभी तप हैं। उनमें रोहिणी-तप सात वर्ष और सात महीने तक करना चाहिए, अथवा रोहिणी नक्षत्र के दिन उपवास करना चाहिए और भगवान् वासुपूज्य की प्रतिमा की पूजा एवं प्रतिष्ठा करनी चाहिए। अम्बा-तप में पांच पंचमी को एकाशन आदि तप करना चाहिए और भगवान् नेमीनाथ तथा अम्बिकादेवी की पूजा करना चाहिए। श्रुतदेवता-तप में ग्यारह एकादशी-पर्यन्त उपवास, मौनव्रत और श्रुतदेवता की पूजा करना चाहिए। शेष तप लोकरूढ़ि के अनुसार जान लेना चाहिए। तप का मुख्य लक्ष्य कषाय-निरोध - आचार्य हरिभद्र पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत् तपोविधि-पंचाशक की छब्बीसवीं गाथा में तप के स्वरूप को प्रतिपादित करते हुए कहते
जब तप में कषाय का निरोध हो, ब्रह्मचर्य का पालन हो, परमात्मा की पूजा-भक्ति हो और अन्न का त्याग हो, वह तप कहलाता है। अन्य सभी प्रकार के तप तो मुग्धलोक में विशेष रूप से प्रचलित हैं।
संसार की मुग्धता के कारण सामान्यजन प्रारम्भ से ही मोक्ष के लिए तप में प्रवृत्त नहीं होते हैं, अपितु वे तो संसार के सुखों की उपलब्धियों के लिए ही तप करते हैं, परन्तु मोक्षाभिलाषी प्रबुद्धजन मोक्ष के लिए ही तप करते हैं।
3 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 19/23 से 25 - पृ. - 342, 343 1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 19/26 - पृ. - 343
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