________________
स्थापना- दोष
साधु को देने के लिए निर्धारित समय तक आहार निकालकर अलग रखना स्थापना- दोष है । साधु द्वारा मांगे जाने पर साधु को देने के लिए दूध-दही
आदि रखना स्थापनादोष है।
प्राभृतिका - दोष
साधुओं के आगमन के कारण निश्चित किए गए समय से पहले भोज आदि का आयोजन करके साधु को भिक्षा देना प्राभृतिका - दोष है । प्राभृतिका - दोष के उत्ष्वष्कण और अवष्वकण- ये दो भेद हैं। इन दोनों के सूक्ष्म और बादर की अपेक्षा से भी दो-दो भेद हैं। इस प्रकार प्राभृतिका के सूक्ष्म उत्ष्वष्कण, सूक्ष्म अवष्वष्कण, बादर उत्ष्वष्कण तथा बादर अवष्वष्कण- ये चार भेद होते हैं।
(1) सूक्ष्म - उत्ष्वकष्कण- ( थोड़ा विलम्ब से) सूत कातते समय माँ से उसका बालक खाना मांगे, तो भिक्षा के लिए आ रहे साधु को देखकर जब साधु आ जाए, उसके पश्चात् माँ अपने बालक को खाना दे, तो साधु के कारण बालक को थोड़ी देर खाने से वंचित रखने के कारण सूक्ष्म उत्ष्वकष्कण-दोष लगता है।
(2) सूक्ष्म - अवष्वष्कण- (थोड़ा पहले) सूत कातती हुई स्त्री साधु के आने पर उनको भिक्षा देने के साथ-साथ बालक को भी खाना दे दे, ताकि फिर उसके लिए अलग से न उठना पड़े, तो थोड़ा पहले खाना देने से सूक्ष्म अवष्वष्कण-दोष लगता है। (3) बादर - उत्ष्वष्कण- आने वाले साधुओं को दान देने का लाभ होगा, इसलिए भोज आदि समारोह का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित समय से न करके विलम्ब से करना । (4) बादर - अवष्वष्कण साधु विहार कर जाएंगे, तो उनको दान देने का लाभ नहीं मिल पाएगा, इसलिए उन कार्यक्रमों को पूर्व निर्धारित समय से पहले करना । प्रादुष्करण और क्रीतदोष का स्वरूप
साधु को भिक्षा देने के लिए भोजन को खुला रख देना
प्रादुष्करण-दोष
प्रादुष्करण - दोष है ।
Jain Education International
—
For Personal & Private Use Only
459
www.jainelibrary.org