Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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प्रायश्चित्त की विचित्रता से मतान्तर का समर्थन - आगमों में प्रायश्चित्त के अनेक भेद हैं, अर्थात् प्रायश्चित्त देने के अनेक प्रकार हैं। इन अनेक प्रकारों का समर्थन करते हुए आचार्य हरिभद्र प्रायश्चित्तविधि-पंचाशक की छब्बीसवीं एवं सत्ताईसवीं गाथाओं में' कहते हैं
आगम में 1. आगम 2. श्रुत 3. आज्ञा 4. धारणा और 5. जीत- ये पाँच प्रकार के प्रायश्चित्त-सम्बन्धी व्यवहार कहे गए हैं। यहाँ व्यवहार से तात्पर्य है- प्रायश्चित्त देने की रीति। आगम- जिससे अर्थ जाना जाता है, वह आगम है। केवलज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी, चौदह, दस, अथवा नौ पूर्व के ज्ञाता आचार्यों के वचन- ये पाँच आगम हैं। आगम के आधार पर प्रायश्चित्त देने की विधि को आगम-व्यवहार कहा जाता है। श्रुत- निशीथ, कल्प, व्यवहार आदि प्रायश्चित्त-सम्बन्धी श्रुत ग्रन्थों के आधार पर प्रायश्चित्त देना श्रुत-व्यवहार है। आज्ञा- एक गीतार्थ या आचार्य आदि दूसरे स्थान पर स्थित हो और अपराधी गीतार्थ उनके पास अपने दोषों की आलोचना के लिए यदि स्वयं न जा सके, तो किसी अगीतार्थ को सांकेतिक भाषा में अपना अतिचार कहकर अन्यत्र स्थित गीतार्थ के पास जाने की आज्ञा दे। वह आचार्य या गीतार्थ भी गूढ़ भाषा में कथित अतिचारों को सुनकर स्वयं वहाँ जाए, या अन्य गीतार्थ को वहाँ भेजे, या संदेशवाहक अगीतार्थ को ही सांकेतिक भाषा में प्रायश्चित्त-सम्बन्धी निर्देश दे, वह आज्ञा-व्यवहार है। धारणा- गीतार्थ गुरु के द्वारा शिष्य की प्रतिसेवना को जानकर जिस अतिचार का जो प्रायश्चित्त अनेक बार दिया गया हो, उसे याद रखकर वैसी परिस्थिति में उसी प्रकार का प्रायश्चित्त अन्यों को देना धारणा-व्यवहार है। जीत- गीतार्थ संविग्नों के द्वारा प्रवर्तित शुद्ध व्यवहार। पूर्वाचार्य जिन अपराधों में बड़े तप-रूप प्रायश्चित्त देते थे, उन अपराधों में वर्तमान में व्यक्ति की शारीरिक-शक्ति आदि में कमी होने से किसी छोटे तप के माध्यम से प्रायश्चित्त देना जीत-व्यवहार है। व्यवहार, प्रतिसेवना, व्यक्ति, परिस्थिति और समय के भेद से उपर्युक्त पाँच प्रकार के
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