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समीप वाले घर में नहीं जाना चाहिए, अपितु आगे बढ़कर दूसरी दिशा, अर्थात् उसके सामने वाले के घर में जाना चाहिए। (4) पंतगवीथिका- पतंग की तरह अनियमित क्रम से भिक्षा के लिए जाना। (5) शम्बूकवृत्ता- शंख की तरह गोलाकार में गोचरी के लिए जाना। (6) गत्वाप्रत्यागता- उपाश्रय से निकलकर एक तरफ के घरों से गोचरी लेकर दूसरी तरफ से वापस आना। 12. जिस ग्रामादि में, यह प्रतिमाधारी है- ऐसा पता चल जाए, वहाँ एक अहोरात्र रहना चाहिए। जहाँ पता न चले, वहाँ दो अहोरात्र तक रह सकते हैं। 13. बिस्तर (संथारा)-उपाश्रय आदि की याचना, सूत्र-अर्थ सम्बन्धी या गृहादि सम्बन्धी पूछताछ, तृण, काष्ठ आदि की अनुमति, सूत्रादि सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर देना- इन चार प्रसंगों पर ही बोलना चाहिए। 14. त्याज्य स्थलों को छोड़कर निर्दोष धर्मशाला, खुला घर या वृक्षादि के नीचे रहे। 15. कारणवश सोना पड़े, तो पृथ्वीशिला, बिना छेद के काष्टपट्ट या घास के बिछौने पर सोना चाहिए। 16. उपाश्रय में आग लग जाए, तो भी भयभीत न हो। यदि कोई निकाले, तो निकले। 17. पैर में कांटा आदि चुभ जाए या आँख में कुछ पड़ जाए, तो उन्हें स्वयं न निकाले । 18. सूर्यास्त के समय जहाँ भी हो, वही सूर्योदय तक रहे। वहाँ से एक कदम भी आगे न बढ़े। 19. प्रासुक जल से हाथ-पैर या मुँह न धोए। 20. दुष्ट हाथी, घोड़ा, सिंह, बाघ आदि आएं, तो रास्ते से नहीं हटे, क्योंकि साधु यदि हट भी जाए, तो वे प्राणी वनस्पति आदि की विराधना करेंगे, इसलिए प्रतिमाधारी साधु को रास्ते से नहीं हटना चाहिए। 21. छाया से धूप में और धूप से छाया में न जाए।
इन अभिग्रहों का पालन करता हुआ साधु महीना पूरा होने तक एक गांव से दूसरे गांव में परिभ्रमण करता रहे।
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