Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
View full book text
________________
गृहस्वामी - विषयक -दोष
आहार भी दे देना गृहस्वामी - विषयक - दोष है । राजा - विषयक- दोष
घर के स्वामी की इच्छा के बिना स्वामी के हिस्से का
आहार के लिए गए मुनि को देखकर राजा अपने परिवार
से खाद्यवस्तू हठात् लेकर साधु को बहराए, तो यह राजा - विषयक - दोष है।
चोर - विषयक - दोष
किसी से छीनकर मुनि को भिक्षा देना चोर - विषयक
आच्छेद्य - दोष है ।
अनिसृष्ट और अध्यवपूरक - दोष का स्वरूप
आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक - प्रकरण के अन्तर्गत पिण्डविधानविधि— पंचाशक की पन्द्रहवीं गाथा में' उद्गम - दोषों का वर्णन करते हुए कहा है
अनेक लोगों के सामूहिक अधिकार वाले भोजनादि को सबकी अनुमति के बिना कोई एक दे दे, तो अनिसृष्ट-दोष लगता है।
अपने लिए खाना आदि पकाने की शुरुआत करने के पश्चात् उस भोजन-सामग्री में साधु को देने के लिए और सामग्री मिला लेना अध्यवपूरक - दोष है, जैसे- दूध में पानी मिला देना, दाल में पानी मिला देना, पकाते हुए चावल में और चावल डाल देना, आदि ।
Jain Education International
आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक - प्रकरण के अन्तर्गत पिण्डविधानविधि— पंचाशक की सोलहवीं गाथा में,± कौनसे दोष विशुद्धकोटि के हैं और कौनसे दोष अविशुद्धकोटि के हैं, इसका प्रतिपादन किया है, जो इस प्रकार है
1.
आधाकर्म और औदेशिक - विभाग के अन्तिम तीन भेद हैंसमुद्देश-कर्म 2. आदेश - कर्म 3. समादेश - कर्म तथा मिश्रजात और अध्यवपूरक के दो भेद पाखण्डी और यति तथा बादर - भक्तपानपूति और बादर - प्राभृतिक- इन मूल छः भेदों के दस भेद अविशुद्धकोटि के हैं, शेष सभी दोष विशुद्धकोटि के हैं ।
227
पंचाशक- प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 13/15- पृ. 2 पंचाशक - प्रकरण – आचार्य हरिभद्रसूरि- 13/16 - पृ. - 227
For Personal & Private Use Only
462
www.jainelibrary.org