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औद्देशिक-दोष- साधु को भिक्षा देने के उद्देश्य से बनाया गया भोजन औद्देशिक-दोष है। आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत अध्याय के अन्तर्गत आठवीं गाथा में औद्देशिक-दोष के स्वरूप की चर्चा की है। औद्देशिक-दोष के तीन प्रकार बताए हैं1. उद्दिष्ट-औद्देशिक,2. कृत-औद्देशिक तथा 3. कर्म-औद्देशिक । (1) उद्दिष्ट-औदेशिक- दुष्काल बीत जाने पर आकस्मिक रूप से मुनियों के आ जाने पर गृहस्थ अपनी पत्नी से कहें कि उसे अब साधुओं आदि को भिक्षा देना है, इस उद्देश्य से वह स्त्री अधिक भोजन बनाए, तो वह औद्देशिक-दोष है। इसमें साधु को हमेशा भिक्षा देने का उद्देश्य होने से इसे उद्दिष्ट-औद्देशिक कहा जाता है। (2) कृत-औद्देशिक- विवाहादि के अवसर पर भोजनोपरान्त अवशिष्ट भात आदि को दही आदि स्वादिष्ट वस्तु के साथ मिलाकर भिक्षा में दिया जाए, तो वह कृ त-औद्देशिक-दोष है। (3) कर्म-औददेशिक- आटा, बेसन आदि अग्नि पर सेंककर, गुड़ आदि मिलाकर देना, अथवा मिठाई बनाकर देना कर्म-औद्देशिक-दोष है। अचित्त को पकाने में भी अग्निकाय आदि की हिंसा तो होती ही है। साधु के उद्देश्य से युक्त होने के कारण यह दोष कर्म-औद्देशिक कहा जाता है। इन तीनों के चार-चार उपभेद होते हैं- उद्देश्य, समुद्देश्य, आदेश और समादेश ।
इन भेदों का अर्थ पिण्ड-नियुक्ति के अनुसार है। उद्देश- समस्त भिक्षाचारों, पाखण्डियों एवं श्रमणों के उद्देश्य से बनाया गया आहार उददेश कहलाता है। समुद्देश- अन्य परम्परा के साधु के निमित्त से बनाया गया आहार समुद्देश कहलाता है। आदेश- श्रमणों के निमित्त बनाया गया आहार आदेश कहलाता है।
1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 13/8 - पृ. - 224
1 पिण्डनियुक्ति - आचार्य भद्रबाहुस्वामी – गाथा- 219
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