Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
View full book text
________________
श्राविकाओं को इनके ग्रहण का अधिकार होता, तो श्राविका शब्द का भी प्रयोग अवश्य होता?
आपका यह कथन सत्य है कि इनके प्रतिज्ञा–पाठों में श्राविका शब्द का प्रयोग नहीं हैं, परन्तु मेरा प्रश्न यह है कि जहाँ भी महापुरुषों ने उपदेश दिया, नियम बताए, सम्बोधित किया, वहाँ साधु, अथवा श्रावक शब्द का ही प्रयोग है। भगवान् महावीर ने गौतम को सम्बोधित करके कहा कि क्षणभर भी प्रमाद मत कर, चन्दन-बाला को नहीं, तो क्या यह उपदेश साधु ही ग्रहण करे, साध्वी नहीं ? अणुव्रत आदि को ग्रहण करने में आनन्द का नाम ही आया है, तो क्या, श्राविकाएँ उनको ग्रहण न करें। स्वयं आनन्द ने अपनी पत्नी को भी अणुव्रत आदि ग्रहण करने हेतु भेजा था, अतः मेरा मानना है कि इन प्रतिमाओं को श्रावक व श्राविकाएँ- दोनों ग्रहण कर सकते हैं, श्राविकाओं के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है। प्रश्न हो सकता है कि पौषध आदि प्रतिमा में धोती के गांठ नहीं लगाना एवं उत्तरवस्त्र धारण करने की बात आती है, तो स्त्री इस प्रकार कैसे कर सकती है ? स्त्री भी एक वस्त्र धारण कर सकती है। दिगम्बर-परम्परा में आर्यिका एक साड़ी ही बिना गांठ के धारण करती है, इस प्रकार से स्त्री भी एक साड़ी में साधना कर सकती है। इन प्रतिमाओं को पालन करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। मन जब संसार से विरक्त बन जाए, तब ही इस प्रकार की साधना में स्वयं को जोड़ देना चाहिए।
-अध्याय तृतीय समाप्त
384
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org