Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
View full book text
________________
सत्य- सत्य वचन बोलना 8. शौच- भावशुद्धि 9. आकिंचन्य- परिग्रह का त्याग 10. ब्रह्म- ब्रह्मचर्य- ये दस साधु के धर्म हैं।
आचारांग में आठ धर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसमें 1. क्षांति 2. विरति 3. उपशम 4. निवृत्ति 5. शौच 6. आर्जव 7. मार्दव 8.लाघव- पंचाशक से भिन्न प्रकार से हैं। ठाणांगसूत्र के पांचवे स्थान के चौंतीसवें सूत्र के अनुसार निर्ग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वर्णित किए गए हैं- 1. क्षांति 2. मुक्ति 3. आर्जव 4. मार्दव और 5. लाघव। पैंतीसवें सूत्र में पुनः पांच स्थान वर्णित किए हैं- 1. सत्य 2. संयम 3. तप 4. त्याग 5. ब्रह्मचर्यवास।' इस प्रकार, उसमें भी दस धर्म उल्लेखित हैं।
प्रवचन-सारोद्धार के अनुसार, दशयति-धर्म पंचाशक-प्रकरण के अनुसार ही हैं।
तत्त्वार्थ-सूत्र में निम्न दशधर्म का उल्लेख है, जो पंचाशक से कुछ भिन्नता रखता है तथा उनके क्रम में भी परिवर्तन है, जो इस प्रकार है- क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचर्य। पंचाशक में शौच के स्थान पर मुक्ति है तथा त्याग के स्थान पर शौच है। 1. क्षमा- दशविधधर्म में सर्वप्रथम क्षमाधर्म है। क्रोध को शान्त करने के लिए ही क्षमाधर्म का महत्व है। क्षमा से तात्पर्य है कि मान-कषाय को क्षय कर देना। चूंकि मान-कषाय के कारण ही क्रोध का आविर्भाव होता है, अतः क्षमा रखना ही श्रमणत्व और श्रावकत्व का लक्षण है। 2. मार्दव- मार्दव का अर्थ है- नम्रता। मान-कषाय को उपशांत करने के लिए ही मार्दवधर्म है, अर्थात् स्वयं कितना भी ज्ञानी हो, तपस्वी हो, धनवान् हो, परन्तु अभिमान न करके नम्रता रखने वाला ही मार्दवधर्म का आराधक है।
' आचारांग-सूत्र - भगवान् महावीर- 1/6/5 'ठाणांगपूउद्देशा 1 - सूत्र-34, 35 - पृ. - 553, 554 प्रवचन-सारोद्धार - खंतिमद्दवऽज्जव मुत्तितव संजमे य बौद्धब्वे।
सच्चं सोयं आकिचणं च नभं च जइधम्मे। 1553।। - पृ. सं. - 252 ' तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-9/6 - पृ. - 208
411
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org