Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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तुम्हारी आँखें बन्द कर दी जाएंगी एवं तुम्हें वह पुष्प प्रभु परमात्मा की प्रतिमा पर प्रक्षेपण करना है । इस प्रकार कहते हुए विधिपूर्वक दीक्षार्थी को समवसरण में प्रवेश करवाने का निर्देश दिया गया है। समवसरण में प्रवेश करने के पश्चात् दीक्षार्थी की गति शुभ है, अथवा अशुभ- इसका विवरण आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत अध्याय की पच्चीसवीं गाथा में किया है
दीक्षार्थी के हाथों में सुगंधित पुष्प देकर उसकी आँखों को श्वेत वस्त्र से आवर्त्त कर निर्भीक होकर जिन - परमात्मा पर पुष्प फेंकने के लिए निर्देश दिया जाता है । फेंकने पर यदि पुष्प समवसरण में गया हो, तो दीक्षार्थी की गति शुभ है और यदि पुष्प समवसरण के बाहर गया, तो यह समझना चाहिए कि दीक्षार्थी की गति अशुभ है।
क्षार्थी की शुभ-अशुभ गति पर विचार करने के सम्बन्ध में कई प्रकार के मत-मतान्तर हैं, जिनका उल्लेख आचार्य हरिभद्र ने नामोल्लेख किए बिना पंचाशक के इस द्वितीय प्रकरण की छब्बीसवीं गाथा में किया है
यहाँ कुछ आचार्यों का कहना है कि दीक्षार्थी द्वारा, अथवा अन्य किसी के द्वारा शुभ-अशुभसूचक सिद्धि - वृद्धि शब्दों के उच्चारण के आधार पर या क्रिया करते समय दीक्षार्थी द्वारा 'इच्छाकारेण तुब्भे दंसणपडियं समत्तसामाइयं वा आरोवेह' आदि शब्दों के उच्चारण के आधार पर दीक्षार्थी की गति - अगति की जानकारी होती है।
कुछ आचार्यों का कहना है कि दीक्षा देने वाले आचार्य के मन-वचन-काययोग की प्रवृत्ति के आधार पर दीक्षार्थी को शुभ - अशुभगति का ज्ञान हो सकता है। आचार्य का मन क्रोध, लोभ, मोह एवं भय से रहित हो, अर्थात् प्रसन्न हो, क्रियादि में उच्चारित वाणी अस्खलित हो, तो दीक्षार्थी की गति शुभ है, अन्यथा अशुभ है । कुछ आचार्यों का मानना है कि दीप, चन्द्र एवं तारों का तेज अधिक हो, तो दीक्षार्थी की गति शुभ है, अन्यथा अशुभ गति है। कुछ लोगों की यह धारणा है कि दीक्षा के बाद दीक्षार्थी के शुभ योगप्रवृत्ति से शुभगति और अशुभ योगप्रवृत्ति से अशुभगति होती है। विधिप्रपा के अनुसार दीक्षार्थी के हाथों से पुष्प के बदले अक्षत् उछालने का वर्णन है।
1 पंचाशक - प्रकरण
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आचार्य हरिभद्रसूरि- 2/26 – पृ. - 28
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