Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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श्रावक के इस प्रकार के सद्भावयुक्त आचरण को दर्शन - प्रतिमा कह सकते हैं। वर्त्तमान में भी श्रावक इस प्रकार की प्रतिमा का वाहक बनकर जी सकता है। दूसरी प्रतिमा में श्रावक बारह व्रतों का निर्दोष रूप से पालन करता है । वर्त्तमान में भी अनेक श्रावक इस व्रत - प्रतिमा का पालन कर प्रथम कक्षा से द्वितीय कक्षा में प्रवेश करते हैं, तब उनके जीवन में ऐसा संकल्प होना चाहिए - मैं संकल्पपूर्वक हिंसा नहीं करूंगा, मैं अपने स्वार्थ के लिए किसी भी दूसरे प्राणी के हितों का अपलाप नहीं करूंगा, विवेकपूर्वक जीवन-यापन करूंगा एवं ऐसा झूठ भी नहीं बोलूंगा, जिससे मेरी प्रतिष्ठा को आघात लगे एवं मेरी आत्मा दुर्गतिगामी हो जाए। मैं ऐसी चोरी नहीं करूंगा, जिससे परिवार, समाज एवं राष्ट्र निन्दा का पात्र बनूं तथा कामभोगों का सेवन भी इस प्रकार नहीं करूंगा, जिससे परिवार, समाज एवं राष्ट्र में मुँह दिखाने योग्य ही नहीं रहूँ एवं दुर्गति का मेहमान बन जाऊं । श्रावक इस प्रकार के संकल्प द्वारा पांच अणुव्रतों का पालन कर सकता है साथ ही गुणव्रतों एवं शिक्षाव्रतों को भी धारण कर निर्दोष रूप से उनके पालन का प्रयास कर सकता है । यह साधक गृहस्थ जीवन की दूसरी भूमिका है। जो श्रावक नैतिक- आचरण की दिशा में आगे कुछ प्रगति करना चाहता है, उसे तीसरी समभाव की साधनारूप सामायिक - प्रतिमा का पालन करने हेतु प्रारम्भ में, अर्थात् इस कक्षा में प्रवेश करने के लिए तीन शल्यों का त्याग करना चाहिए- मायाशल्य, निदानशल्य और मिथ्यादर्शन शल्य । ये तीन शल्य मानव को मानवता से दूर रखते हैं, अर्थात् मानवता के मौलिक - गुणों को प्रकट नहीं होने देते हैं। श्रावक जब तीसरी कक्षा में प्रवेश करता है, तो विशेष रूप से समत्व की साधना करता है। द्वितीय भूमिका में साधक शिक्षाव्रतों का अभ्यास कभी-कभी करता है, इसलिए सामायिक - व्रत की गहराई में जाने के लिए तीसरी कक्षा में केवल सामायिक - साधना को ही स्थान दिया है, अतः इस प्रतिमा में साधक अधिक से अधिक सामायिक (समत्व - योग ) की साधना करे । सामायिक प्रतिमा का जो स्वरूप प्राचीनकाल में था, वही स्वरूप से वर्त्तमान भी है । श्रावक पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए भी इस प्रतिमा का आजीवन पालन करते हुए मन को साधने का अभ्यास कर सकता है।
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